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जाता है। यदि द्रव्यों में द्रव्यत्व गुण नहीं मानेगें तो सभी द्रव्य सर्वथा परिणमनरहित होकर कूटस्थ नित्य हो जायेंगे।
4. प्रमेयत्व -
प्रमेय के भाव को प्रमेयत्व कहा जाता है और जो प्रत्यक्ष आदि प्रमाण-ज्ञान के द्वारा जाना जाता है, वह प्रमेय है।019 जिस शक्ति के निमित्त से द्रव्य किसी न किसी ज्ञान का विषय बनता है, वह प्रमेयत्व है। द्रव्य अपनी समस्त भूत, भविष्य और वर्तमानकालीन पर्यायों सहित किसी न किसी प्रमाण ज्ञान का विषय बनता है। प्रमेयत्व गुण के कारण ही द्रव्य को प्रमेय या ज्ञेय कहते हैं। प्रमेयत्व गुण सभी द्रव्यों में पाये जाने पर भी स्व और पर को जानने का सामर्थ्य जीवद्रव्य के अतिरिक्त अन्य किसी द्रव्य में नहीं है। जीवद्रव्य ज्ञाता और ज्ञेय (प्रमेय) दोनों है। यशोविजयजी के शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों के द्वारा जो प्रमा (ज्ञान) का विषय बनता है, वह प्रमेयत्वगुण है। 1020 यह प्रमेयत्व गुण कथंचिद् अन्वित होकर सभी द्रव्यों में साधारण रूप से पाया जाता है। 1021 इसका तात्पर्य यह है कि छहों द्रव्यों प्रत्यक्षादि सभी प्रमाणों के द्वारा परिच्छेद्य नहीं होते हैं। कोई द्रव्य एक प्रमाण का विषय बनता है तो दूसरा कोई द्रव्य दो प्रमाणों के द्वारा जाना जाता है। जैसे धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य छद्मस्थों के लिए अनुमान और आगम प्रमाण के द्वारा परिच्छेद्य है। छद्मस्थ जीव के लिए धर्म आदि चार द्रव्य अतीन्द्रिय होने से प्रत्यक्ष प्रमाण का विषय नहीं बन सकते हैं। परन्तु केवली इन्हीं चार द्रव्यों को प्रत्यक्षप्रमाण से जानते हैं। यद्यपि छद्मस्थ प्राणी के लिए घट, पट आदि स्थूल पुद्गलस्कन्ध प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा ग्राह्य होने पर भी परमाणु, द्वयणुक, त्र्यणुक आदि रूप पुद्गलद्रव्य अनुमान और आगम प्रमाण से ग्राह्य है। परन्तु केवली भगवान के
1019 प्रमेयस्यभावः प्रमेयत्वं, प्रमाणेन स्व-पररूपं परिच्छेद्यं प्रमेयम् ... 1020 प्रमाणनइं परिच्छेद्य जे रूप -प्रमाविषयत्व, ते प्रमेयत्व कहिइं
आलापपद्धति, सू. 98 यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/1 का
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.... द्रव्यगुणपणा
टब्बा
1021 ते पणि कथंचिद अनुगत सर्वसाधारण गुण छइ .....
वही. गा. 11/1 का टब्बा
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