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यशोविजयजी के अनुसार सामान्य गुण -
1. अस्तित्व -
अस्ति अर्थात् होने का भाव अस्तित्व है। अस्तित्व का अर्थ है सत्। द्रव्य के सद्भावरूप या सत्रुप स्वभाव को अस्तित्वगुण कहते हैं।002 जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कभी नाश नहीं होता है, वह शक्ति अस्तित्वगुण है। 003 इस गुण के कारण ही द्रव्य अपनी सभी पर्यायों में अन्वितरूप से विद्यमान रहता है। यशोविजयजी के अनुसार जिससे वस्तु की सद्रूपता का व्यवहार होता है, वह अस्तित्वगुण है।1004 वस्तु है, वस्तु सत् है, वस्तु विद्यमान है, इस जगत में वस्तु की उपस्थिति है, इत्यादि को सद्रूपता कहा जाता है। 1005 इस सद्रूपता का व्यवहार अर्थात् 'वस्तु है' इस कथन का व्यवहार जिस गुण के कारण होता है, वह अस्तित्वगुण है। यदि द्रव्य में अस्तित्वगुण नहीं होता तो असद्रूतता का व्यवहार होता। परन्तु षड्द्रव्यों में सद्रूपता (है, सत् है, इत्यादि) का व्यवहार होता है। अतः अस्तित्वगुण छहों द्रव्यों में पाया जाता है। आचार्य तुलसी ने भी द्रव्य के विद्यमानता को ही अस्तित्व कहा है। 1006 अस्तित्वगुण के कारण ही जीव-अजीव आदि छहों द्रव्य काल की अपेक्षा अनादि-अनंत और स्वयंसिद्ध है। इसलिए उन्हें किसी ने बनाया नहीं है। इसी अपेक्षा से छहों द्रव्यों का समूहरूप विश्व भी ईश्वर आदि की रचना नहीं है।1007
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1002 अस्ति इति एतस्य भावः अस्तित्वं सद्रूपत्वं
आलापपद्धति, सू. 94 1003 नयचक्र का विवेचन - पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृ.7 1004 तिहां अस्तित्वगुण ते कहिइं, जेहथी सद्पतानो व्यवहार थाइं ................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 11/1 का टब्बा 1005 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2, धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 536 1006 जैनसिद्धान्तदीपिका, 1/38 1007 जिनागमसार, पृ. 316
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