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________________ ___353 वस्तुतः गुण से द्रव्य का और द्रव्य से गुण का अस्तित्व भिन्न नहीं है। अतः दोनों में एकद्रव्यपना है। द्रव्य और गुण दोनों के प्रदेश भिन्न नहीं होने से उनमें एक क्षेत्रपना भी है। दोनों के सदा साथ रहने से उनमें एक कालपना भी है। दोनों का एक स्वभाव (ध्रुवपना) होने से एकभावपना भी है। इस कारण से गुण द्रव्य के सहभावी धर्म कहे जाते हैं।991 यशोविजयजी के प्रायः समकालीन पं. राजमल्ल कविराजकृत पंचाध्यायी में 'सहभावी' शब्द का अर्थ भिन्न रूप से किया गया है। गुण द्रव्य के सदा साथ-साथ रहने से सहभावी है ऐसा अर्थ करने पर गुण भिन्न पदार्थ और द्रव्य भिन्न पदार्थ हो जायेगा। जबकि जैनदर्शन के अनुसार गुण से भिन्न द्रव्य कोई पदार्थ नहीं है। द्रव्य अनन्त गुणों का अखण्ड पिण्ड है। इसलिए सहभावी शब्द का अर्थ यह करना चाहिए कि द्रव्य के सभी गुण साथ-साथ रहते हैं।992 गुणों के जितने भी परिणमन होते हैं, उन सभी में तत्-तत् गुण साथ-साथ रहते हैं। गुणों का परस्पर वियोग नहीं होता है। जो गुण प्रथम समय में हैं, वे ही गुण द्वितीय समय में भी रहते हैं। पर्यायों में यह बात नहीं है। जो पर्यायें पूर्व समय में हैं, वे उत्तर समय में विद्यमान नहीं रहती 991 नयचक्र का विवेचन -पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, पृ.6 922 ननु सह समं मिलित्वा द्रव्येण च सहभुवो भवन्त्विति चेत् । तन्न यतो हि गुणेभ्यो द्रव्यं पृर्थगिति यथा निषिद्वत्वात् ।। ..... पंचाध्यायी, 1/140 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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