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________________ 351 सदृशपरिणाम और विदृशपरिणाम। जिसके कारण 'यह वही है' ऐसी सदृशता देखी जाती है, वह सदृश परिणाम ही गुण है। चैतन्य की अपेक्षा से मानव, पशु, नारकी, देव आदि सब एक समान दिखाई देते हैं। जीव मरकर चाहे देव, दानव, मानव, पशु हो जाये, परन्तु चैतन्य गुण सबमें परिलक्षित होता है। चैतन्यता के कारण ही देव, दानव आदि जीव की पर्याय में सदृशता दिखाई देती है। जीव का चैतन्यगुण जीव के प्रत्येक प्रदेश में व्याप्त रहता है। जीव का चैतन्य गुण अनादि-अनिधन है। न उत्पन्न होता है और नहीं नष्ट होता है। किसी जीव का चैतन्यगुण नष्ट नहीं होता है। उसी प्रकार किसी भी पुद्गलद्रव्य में चैतन्यगुण उत्पन्न नहीं होता है। जिस द्रव्य के जितने और जो-जो गुण होते हैं वे तीनों काल में उतने और वे ही रहते हैं, बदलते नहीं है। गुण सदा द्रव्य के सहवर्ती होते हैं।983 गुण से पृथक् द्रव्य का और द्रव्य से पृथक् गुण का अस्तित्व नहीं होता है। एक द्रव्य के सभी गुण युगपद् या एक साथ रहते हैं। इन गुणों का समुदाय ही द्रव्य है। अतः नयचक्र में जो द्रव्य के सहभावी हो उन्हें गुण कहा गया है। आलापपद्धति85 में भी गुण उन्हें ही कहा गया है जो द्रव्य में युगपद् रूप से सदाकाल रहते हों। गुण को जैसे अन्वयी कहा जाता है, वैसे ही ‘सहभू' (साथ-साथ रहने वाले) भी कहा जाता है। क्योंकि द्रव्य के सभी गुण एक साथ रहते हैं। पर्याय की तरह क्रम-क्रम से नहीं होते हैं।986 गुण के शक्ति, लक्ष्य, धर्म, रूप, स्वभाव, प्रकृति, शील और आकृति ये सब पर्यायवाची शब्द हैं।87 इनको एकार्थवाची कहने से गुण के वास्तविक स्वरूप को समझना सुलभ हो जाता है। 983 सहवर्तिनो गुणाः ....... ... आवश्यकनियुक्ति, हरि.वृ, पृ. 445 984 दव्वाणं सहभूदा सामण्णविसेसदो गुणा णेया। ..... नयचक्र, गा. 11 985 सह भूवो गुणाः आलापपद्धति, सू. 92 986 तद्वाक्यान्तरमतेद्यथा गुणाः सहमूवोपि चान्वयिनः । ....... पंचाध्यायी, श्लो. 1/138 987 शक्तिर्लक्ष्य विशेषो धर्मो रूपं गुणः स्वभावश्च । प्रकृतिः शीलं चाकृतिरेकार्थवाचका अमी शब्दाः।। .......... वही, श्लो. 1/48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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