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________________ 350 को भिन्न रूप से परिभाषित करते हुए सामान्य और विशेष दोनों गुणों की व्याख्या की है। इनकी चर्चा हम आगे करेगें। सामान्यतया वस्तु की विशिष्टता ही उसका गुण होता है। जैसे–चन्द्र की विशिष्टता शीतलता है और वही उसका गुण है। साधु की विशिष्टता समता है और समता ही साधु का गुण है। जिससे वस्तु की पहचान बनती है, वह उस वस्तु का गुण है। इस दृष्टि से गुण और विशेषता- ये दोनों ही एकार्थ वाचक है। पंचास्तिकाय के तात्पर्यवृत्ति में अनेकान्तात्मक वस्तु के अन्वयी विशेष को ही गुण कहा है।' द्रव्य को अन्वय और गुण को अन्वयी कहा जाता है। द्रव्य का बिना किसी रूकावट से प्रवाहरूप से चलते रहने से ऐसा अनुगत अर्थ घटित होने से उसे अन्वय कहा जाता है।78 ये अन्वय जिनके हैं वे अन्वयी कहलाते हैं। इसका आशय यह है कि जिसमें 'यह वही है ऐसी बुद्धि हो, वह अन्वयी कहलाता है। द्रव्य में अन्वयता या 'यह वही है' ऐसी पहचान गुणों के कारण ही होती है। क्योंकि द्रव्य के समस्त अवस्थाओं में (पर्यायों में) गुण की अनुवृत्ति बराबर पायी जाती है। इसलिए गुण अन्वयी कहलाते हैं। अतः अनन्त गुणों के समुदाय रूप द्रव्य में जिन विशेषों (विशिष्टताओं) की अनुवृति पायी जाती है, वे अन्वयी विशेष ही गुण है। गुण को विस्तार विशेष भी कहा जाता है।980 जो विशेष सदैव गुण के आश्रित रहते हैं और जो निर्गुण या निर्विशेष होते हैं ऐसे जितने भी 'विशेष' हैं, वे सब गुण कहलाते हैं।981 द्रव्य का जो अनादि-अनिधन सदृश परिणाम है, वही गुण है।92 द्रव्य के सभी पर्यायों में जो एक समानता या सदृश्ता दिखाई देती है, उसे ही गुण नाम से अभिव्यंजित किया गया है। परिणमनशील द्रव्य में दो प्रकार के परिणाम होते हैं 977 अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनोऽन्ययिनो विशेषा गुणाः .................. पंचास्तिकाय-तात्पर्यवृत्ति, गा. 10 978 अनुरित्व्युच्छिन्न्प्रवाहरूपेण वर्तते यद्वा। ... पंचाध्यायी, श्लो. 1/142 979 अयमन्वयोस्ति येषामन्वयनिस्ते भवन्ति गुणवाच्या .... वही, श्लो. 1/144 980 गुणाः विस्तार विशेषाः प्रवचनसार-तात्पर्यवृत्ति, गा. 2/3 981 द्रव्याश्रया गुणाः स्युर्विशेषमात्रास्तु निर्विशोश्च ... पंचाध्यायी, श्लो. 1/104 982 सरिसो जो परिणामो अणाइ-णिहणो हवे गुणो सो हि। ............. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा. 241 Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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