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परवर्ती ग्रन्थों में गुण शब्द का अर्थ -
___ उत्तराध्ययनसूत्र में द्रव्य के आश्रित रहनेवाले धर्म या शक्ति के अंश (विशेष) के लिए 'गुण' शब्द का प्रयोग हुआ है। दशवैकालिकसूत्र62 में गुण शब्द का प्रयोग अनेक स्थानों पर हुआ है। इस सूत्र में प्राय: करके सर्वत्र गुण शब्द का अर्थ अच्छाइयां या सद्गुण ही किया गया है। इसमें ज्ञान, दर्शन, संयम, तप, आर्जव भाव इत्यादि को गुण शब्द से अभिहित किया गया है।
तत्त्वार्थसूत्र63 में गुण शब्द का प्रयोग अलग-अलग अध्याय में अलग-अलग अर्थ में किया है। दूसरे अध्याय में गुणीत के अर्थ में, पंचम अध्याय में द्रव्य के आश्रित रहने वाले द्रव्य के ही स्वभाव या धर्म के लिए तथा अंश के लिए गुण शब्द आया है। परन्तु इसी सूत्र के सप्तम अध्याय में सद्गुण (Virtues) के लिए गुण शब्द प्रयुक्त है। उमास्वाति विरचित दूसरे ग्रन्थ 'प्रशमरतिप्रकरण964 में गुण शब्द का प्रयोग सद्गुण के अर्थ में तो हुआ ही है साथ में काल के वर्तना एवं परत्वापरत्व आदि लक्षण के लिए तथा पुद्गल के वर्णादि लक्षण के लिए भी गुण शब्द प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकरण में 'असंख्यातगुणहीन' ऐसा शब्द प्रयोग करके यहाँ गुण से तात्पर्य भाग किया गया है।965
आचार्य कुन्दकुन्द ने जहाँ 'समयसार986 में गुण का प्रयोग ज्ञान, दर्शन आदि के लिए एवं चेतना आदि के लक्षण के रूप में किया है, वहीं पंचास्तिकाय और 'प्रवचनसार' में गुण का अर्थ द्रव्य के धर्म या स्वभाव या शक्ति–अंश (विशेष) के लिए
961 उत्तराध्ययनसूत्र, 28/6 962 दशवैकालिकसूत्र, 6/68, 7/49 963 तत्त्वार्थसूत्र, 2/40, 5/37, 50, 33, 35, 7/6 964 प्रशमरतिप्रकरण, का. 208
965 वही, का. 218
966 समयसार, गा. 30,41
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