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बौद्धदर्शन और जैनदर्शन -
जैनदर्शन वस्तु को परिवर्तनशील मानकर भी उसे सर्वथा क्षणिक नहीं मानता है, जैसा कि बौद्धदर्शन मानता है। बौद्धदर्शन के अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण नष्ट हो रही है। सब कुछ क्षणिक है ; कुछ भी स्थायी नहीं है।949 जैनदर्शन भी वस्तु को प्रतिक्षण परिवर्तनशील मानता है, किन्तु उसका सर्वथा नाश नहीं मानता है। पर्यायों के उत्पाद और व्ययरूप परिणमन के बावजूद भी द्रव्य का नाश नहीं होता है। उदाहरणार्थ मिट्टी में पिण्डाकार का नाश और घटाकार का उत्पाद रूप परिणमन होने पर भी मिट्टी का सर्वथा नाश नहीं होता है। मिट्टी के पिण्डाकार के नाश के साथ ही मिट्टी का सर्वथा नाश मानने पर तो घट की उत्पत्ति असत् से माननी पड़ेगी परन्तु यह सर्वमान्य नियम है कि सत् का नाश और असत् की उत्पत्ति कभी नहीं होती है।
यदि व्यक्ति या वस्तु अपने पूर्व क्षण की अपेक्षा उत्तर क्षण में सर्वथा बदल जाते हैं तो कर्मफल और नैतिकता आदि की व्याख्या भी नहीं हो सकेगी।950 दान देने वाला या पाप करनेवाला नष्ट हो गया तो दान या पाप का फल किसे मिलेगा? पापफल का भोग कौन करेगा ? इसी प्रकार जिसने कर्मबन्ध किया, वह सर्वथा नष्ट हो गया तो मोक्ष किसका होगा ? पूर्व में किये हुए चोरी आदि के लिए भी व्यक्ति को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता है। क्योंकि जिसने चोरी की, वह तो नष्ट हो गया। पुनः ऋण देनेवाला अपने ऋणी को पहचानकर ऋण को वसूल भी नहीं कर सकता है। ‘यह वही है जिसने ऋण लिया था, ऐसा प्रत्यभिज्ञान क्षणिकवाद में संभव नहीं हो सकता है। परिमाणस्वरूप परिवर्तन के इस दौड़ में एक दूसरे को पहचान नहीं पाते। इस प्रकार क्षणिकवाद में प्रत्यभिज्ञान, दान का फल, पापों का भोग, बन्ध और मोक्ष आदि घटित नहीं होते हैं।951
949 भारतीयदर्शन, -जे. एन. सिन्हा, पृ. 27 950 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा, पृ. 9 951 प्रत्यभिज्ञा पुनर्दानं भोगोपार्जितैनसाम्
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