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________________ 339 अन्य दर्शनों से जैनदर्शन के द्रव्य की समानता और विषमता : जैनदर्शन के अनुसार सत् का लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य है।943 जो सदा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त होता है, वही द्रव्य है। अखण्ड द्रव्य में उत्तर पर्याय का प्रादुर्भाव उत्पाद है। जैसे – मिट्टी से घट का बनना। पूर्व पर्याय का विनाश व्यय है। जैसे- मिट्टी के पिण्डाकार का नाश। इस प्रकार पूर्व पर्याय का विनाश तथा उत्तर पर्याय का उत्पाद होने पर भी अपनी जाति को न छोड़ना ध्रौव्य है। जैसे पिण्ड आकार और घट दोनों ही अवस्थाओं में मिट्टीपना ध्रुव है। प्रत्येक द्रव्य प्रतिसमय उत्तर अवस्था से उत्पन्न, पूर्व अवस्था से व्यय और द्रव्यत्व से ध्रौव्य रहता है। इस प्रकार द्रव्य परिवर्तित होकर भी अपरिवर्तनशील है अथवा बदलकर भी नहीं बदलता है। अस्थान्तरण या पर्यायान्तरण रूप में प्रतिक्षण परिवर्तित होने पर भी वस्तु वही की वही रहती है। उत्पादव्यात्मक होने से जो परिवर्तनशील है वह पर्यायरूप है तथा ध्रौव्यरूप होने से जो अपरिवर्तनशील है वह द्रव्यरूप है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक सत्ता द्रव्यरूप से नित्य है और पर्यायरूप से अनित्य है। यही जैनदर्शन का परिणामीनित्यवाद है। वेदान्त और जैनदर्शन - जैनदर्शन सम्मत द्रव्य एकान्त रूप से न तो नित्य है और न ही क्षणिक है, अपितु नित्यानित्य है। जैनदर्शन द्रव्य के नित्यपक्ष की अपेक्षा से वेदान्तदर्शन के निकट है। दोनों दर्शन सत् को नित्य मानने पर भी दोनों की नित्यता में अन्तर है। वेदान्तदर्शन44 सत् को कूटस्थनित्य, परमार्थिक दृष्टि से निर्विकार और अव्यय मानता है अर्थात् त्रिकाल में उसमें कोई परिवर्तन घटित नहीं हो सकता है। जबकि जैनदर्शन सत् को परिणामीनित्य मानता है अर्थात् द्रव्य के रूप में नित्य होते हुए भी 943 तत्त्वार्थसूत्र – 5/29 944 भारतीयदर्शन, -जे.एन. सिन्हा, पृ. 314 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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