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________________ 327 जीवास्तिकाय - 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में षड़द्रव्यों के विवेचन के क्रम में उपाध्याय यशोविजयजी ने जीवद्रव्य का अतिसंक्षेप व्याख्या प्रस्तुत की है। जीवद्रव्य को अस्तिकाय के अन्तर्गत रखा जाता है। जीवद्रव्य भी असंख्य प्रदेशों का समूह है। षड़द्रव्यों में तथा नवतत्त्वों में 'जीव' प्रधान द्रव्य और तत्त्व है। आगम साहित्यों में जीव और उसके लक्षण, स्वरूप, भेद-प्रभेद-बन्धन–मुक्ति आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा उपलब्ध है। जीव की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है कि जीवत्व तथा आयुष्य कर्म का भोग करनेवाला जीव है।903 जो द्रव्य प्राण और भावप्राणों से जीया था, जीता है, और जिएगा, वह जीव है।04 प्राण वह शक्ति विशेष है, जिसके आधार पर जीव जीता है। संसारी जीव इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, आयु और बल (मन, वचन और काया} इन प्राणों के आधार पर जीते हैं जबकि सिद्धजीवों के लिए चेतनारूप " भावप्राण होता है। जीव का लक्षण और स्वरूप - जीव का मुख्य लक्षण उपयोग या चेतना है।905 उत्तराध्ययनसूत्र में जीव के लक्षण को मीमांसित करते हुए कहा है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये जीव के लक्षण है।06 उपाध्याय यशोविजयजी ने जीव का मुख्य लक्षण चेतना बताया है जिसके आधार पर जीव की अन्य जड़ द्रव्यों से अलग पहचान बनती है। भगवतीसूत्र और स्थानांगसूत्र में जीवास्तिकाय के स्वरूप की मीमांसा इस प्रकार की है007 - 903 जीव-जीवंत आउयं च कम्मं उवजीवितं तम्हा जीवे – भगवतीसूत्र-2/1/15 904 पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीवस्सदि जो हि जीविदो पुव्वं – प्रवचनसार, 2/55 905 भगवतीसूत्र - 2/10/128, उत्तराध्ययन सूत्र – 28/10 906 उत्तराध्ययनसूत्र - 28/11 907 स्थानांग-5/3/173, भगवतीसूत्र-2/3/128 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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