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________________ 326 पुद्गल का उपकार - भगवतीसूत्र में पुद्गल के उपकारों को बताते हुए कहा है कि -जीव पुद्गलास्तिकाय के द्वारा ही औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण शरीर, श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय, मनोयोग, वचनयोग, काययोग और आनपान को ग्रहण करता है।900 संसारी जीव पुद्गल के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता है। संसारी जीव के उपयोग में आने वाली सभी वस्तुएं पौद्गलिक है। शरीर, इन्द्रियाँ, श्वासोच्छवास, भाषा, मन आदि सभी पदार्थ पौद्गलिक हैं। खाद्यपदार्थ, वस्त्र, मकान आदि भी पौद्गलिक हैं। यह समस्त दृश्य जगत पौद्गलिक है। तत्त्वार्थसूत्रकार ने पुद्गल द्रव्य के उपकार को इस प्रकार मीमांसित किया है- शरीर, वाणी, मन, उच्छवास और निःश्वास ये पुद्गल के उपकार हैं। सुख, दुःख, जीवन और मरण भी पुद्गल के ही उपकार हैं।901 औदारिक आदि पांचों प्रकार के शरीर औदारिक आदि पुद्गल वर्गणा से निर्मित होते हैं। भाषा वर्गणा ही वाणी के रूप में परिणत होते हैं। मनोवर्गणा से निर्मित द्रव्यमन के बिना मानसिक चिन्तन संभव नहीं है। चिन्तन के पूर्व मनोवर्गणा के स्कन्धों को ग्रहण किया जाता है। जीव द्वारा पेट के भीतर पहुंचाया जानेवाला उच्छवासवायु और पेट से बाहर निकाले जाने वाली निःश्वास वायु भी पौद्गलिक है। इसी प्रकार सुख और दुःख, साता और असाता वेदनीय कर्मरूप अन्तरंग और द्रव्य, क्षेत्र आदि बाह्य निमित्तों से उत्पन्न होता है। आयुष्यकर्म के उदय से उच्छवास और निःश्वास का चलते रहना जीवन और इनका उच्छेद मरण है।902 इस प्रकार पुद्गलास्तिकाय द्रव्य जीवास्तिकाय द्रव्य के लिए अनुग्रहकारी है। 900 भगवतीसूत्र – 13/4/60 901 तत्त्वार्थसूत्र - 5/19, 20 902 तत्त्वार्थसूत्र – पं. सुखलालजी, पृ. 125, 126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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