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भासूर रूप और उष्ण स्पर्श प्रसिद्ध है, उसी प्रकार अन्धकार का कृष्ण रूप और शीतस्पर्श प्रसिद्ध है। पुद्गलों का सघन कृष्णवर्ण के रूप में परिणमन ही अंधकार है। अंधकार भी पुद्गलद्रव्य है। क्योंकि उसमें गुण है। जो गुणवान होता है वह द्रव्य होता है। 893 अंधकार में कृष्ण वर्ण है। अतः यह पौद्गलिक है । भगवतीसूत्र अंधकार को स्पष्ट करते हुए कहा है कि- रात्रि में अशुभ पुद्गलों का अशुभ रूप से परिणमन होने से अंधकार होता है। 894
8. छाया
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9. आतप
छाया प्रकाश को रोकनेवाले पदार्थ के निमित्त से उत्पन्न होती है। 895 छाया पुद्गलों का प्रतिबिम्ब रूप परिणमन है । प्रत्येक स्थूल पदार्थ से प्रतिसमय तदाकार रश्मियाँ निकलती रहती हैं। वे अनुकूल सामग्री के प्राप्त होने पर उसी रूप में परिणत हो जाती है। इस प्रतिबिम्ब को छाया कहा जाता है । छाया दो प्रकार की होती हैं। 897 1. तद्वर्णादि विकार :- दर्पण आदि में आकार आदि का ज्यों का त्यों दिखाई देना। 2. प्रतिबिम्ब :- अन्य द्रव्यों पर अस्पष्ट प्रतिबिम्ब मात्र पड़ना ।
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सूर्य, अग्नि आदि का उष्ण प्रकाश आतप है। 898
10. उद्यो
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चन्द्र, मणि, खद्योत आदि का शीत प्रकाश उद्योत है। 899
1893 जैन धर्मदर्शन डॉ. मोहनलाल महेता, पृ. 201
894 भगवतीसूत्र
5/9/238
895 सर्वार्थसिद्धि - 5/24/572
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1896 जैन सिद्धान्त दीपिका
897 तत्त्वार्थराजवार्तिक 898 सर्वार्थसिद्धि 899 वही - 5/24/512
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