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________________ तो टेप, रेडियो, टेलीफोन आदि आधुनिक साधनों के माध्यम से पकड़ में नहीं आता । इसलिए शब्द पौद्गलिक और मूर्त है । संघात और भेद को प्राप्त होने वाले पुद्गल स्कन्धों से शब्द उत्पन्न होता है। 885 शब्द का कारण पुद्गल - स्कन्धों का परस्पर टकराना है। एक स्कन्ध से दूसरे स्कन्ध के टकराने से या किसी स्कन्ध के टूटने से जीव, उत्पन्न ध्वनिरूप परिणाम शब्द है । शब्द के मुख्य रूप से तीन भेद हैं अजीव और मिश्र | जीव जीव के द्वारा उच्चरित शब्द । अजीव अव्यक्त ध्वनि आत्मक शब्द । मिश्र जीव और अजीव के संयोग से जनित शब्द । तत्त्वार्थराजवार्तिक में शब्द के भाषात्मक और अभाषात्मक आदि दस भेद किये हैं। 886 — - Jain Education International 885 स्थानांगसूत्र - 2/3/220 886 तत्त्वार्थराजवार्तिक - 5 / 24 887 वही - 5/24/13 323 — 2. बन्ध - जो बन्धे या जिसके द्वारा बांधा जाय वह बन्ध है । 887 दो या दो से अधिक परमाणुओं का या स्कन्धों का परस्पर बन्ध होता है । इसी प्रकार एक या एक से अधिक परमाणुओं का एक या एक से अधिक स्कन्धों के साथ बन्ध होता है। पुद्गल परमाणुओं (कार्मण वर्गना) का जीव के साथ भी बन्ध होता है । प्रायोगिक और वैनसिक रूप से बन्ध के दो मुख्य भेद हैं । प्रायोगिक बन्ध के पुनः दो भेद होते हैं । लाख लकड़ी का बन्ध अजीव विषयक बन्ध है तथा जीव और पुद्गलकर्मों का बन्ध जीवाजीवविषय बन्ध है । वैस्रसिक बन्ध स्वाभाविक बन्ध है । जैसे इन्द्रधनुष, मेघ उल्का आदि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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