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पाये जाते हैं। अब तो इन कणों की संख्या सौ से भी अधिक हो गई है। इनमें से कोई भी कण परमाणु नहीं है। जैनदृष्टि से परमाणु वह मूल कण है जिसमें कोई भेद या विभाग संभव नहीं है।976 यही कारण है कि विज्ञान का तथाकथित परमाणु खण्डित हो चुका है जबकि जैनदर्शन का परमाणु अभी वैज्ञानिकों की पकड़ में आ ही नहीं पाया है। वस्तुतः जैनदर्शन में जिसे परमाणु कहा गया है, उसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने क्वार्क का नाम देकर उसकी खोज में रत हैं। परन्तु आज भी क्वार्क का विश्लेषण करने में आधुनिक वैज्ञानिक असफल ही रहे हैं। जैनदर्शन के अनुसार परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण मूर्त होते हुए भी इन्द्रियों एवं प्रयोग के विषय से अतीत है। इस प्रकार जैनदर्शन में परमाणु की सूक्ष्मातिसूक्ष्म व्याख्या की गई है।
परमाणु एक प्रदेशी होता है78 अर्थात् आकाश की सूक्ष्मतम ईकाई को घेरता है। आकाश के इसी एक प्रदेश में एक से लेकर यावत् अनन्त पुद्गल परमाणु स्वतन्त्र रूप से या स्कन्ध के रूप में रह सकते हैं।979 परमाणु के सूक्ष्म परिणमन क्षमता के कारण एक प्रदेश में ही अनेक परमाणु अवगाहित हो जाते हैं।880 जैसे बिजली के ठोस तार में भी विद्युत प्रवाहित हो जाती है। दूध से लबालब भरे पात्र में शक्कर आदि ठोस पदार्थ समा जाते हैं।
परमाणु की गतिक्रिया -
परमाणु जड़ होते हुए भी गतिशील और क्रियाशील है। भगवतीसूत्र में परमाणु की क्रियाशीलता के संदर्भ में कहा गया है – परमाणु कभी कंपन करता है, कभी
876 जैनधर्म और दर्शन – मुनिप्रमाणसागर, पृ. 104 877 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा - डॉ. सागरमल जैन, पृ. 52 878 नाणोः – तत्त्वार्थसूत्र, 5/11 879 सर्वार्थसिद्धि – पृ. 212 880 जैनधर्म और दर्शन – मुनि प्रमाणसागर, देखें पृ. 105
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