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स्कन्धोत्पत्ति :- स्कन्धों की उत्पत्ति तीन प्रकार से होती है।885
1. भेद से :- भेद का अर्थ होता है- टूटना। बड़े-बड़े स्कन्धों के टूटने पर
छोटे-छोटे स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। जैसे - ईंट, पत्थर आदि को तोड़ने पर दो या दो से अधिक टुकड़े होते हैं। ये भेदजन्य स्कन्ध है।
2. संघात से :- संघात का अर्थ है- जुड़ना। दो या दो से अधिक परमाणु या
स्कन्धों के परस्पर मिलने से स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। ये संघात जन्य
स्कन्ध है। 3. भेद संघात से :- भेद-संघात का अर्थ है - टूटकर और जुड़कर। एक साथ
किसी स्कन्ध से टूटकर अन्य स्कन्धों से जुड़ने से उत्पन्न स्कन्ध भेद-संघातजन्य स्कन्ध कहलाते हैं।
पुद्गल परमाणुओं में स्वभाव से स्निग्धता या रूक्षता होती है। जिनके कारण इनका परस्पर बन्ध होता है।886
पाँच अस्तिकायों में केवल पुद्गलास्तिकाय में ही संघात और संघात के पश्चात् भेद की शक्ति है। यदि इसमें संघात और भेद की शक्ति नहीं होती तो यह विश्व या तो पिण्ड के रूप में होता या परमाणु के रूप में ही नजर आता।287 विश्व-व्यवस्था की दृष्टि से पुद्गलास्तिकाय के विखण्डन (Fission) और संलग्न (Fussion) गुण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। 2. देश :
स्कन्ध से अपृथक्भूत बुद्धि कल्पित भाग को देश कहा जाता है।868 जैसेसाड़ी का किनारा। यह साड़ीरूप स्कन्ध का एक देश कहलाता है। देश अपने स्कन्ध से अपृथक्भूत होता है। पृथक् होने पर तो वह स्वयं एक स्कन्ध कहलायेगा।
865 संघातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते ...........
तत्त्वार्थसूत्र - 5/26 866 स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्ध - ............
सूत्र, 5/32 867 जैनदर्शन में द्रव्य की अवधारणा का समीक्षात्मक अध्ययन-शोधप्रबन्ध-साध्वी.योगक्षेमप्रभा, पृ.85
868 जैन सिद्धान्त दीपिका - 1/30
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