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होते हैं और विभिन्न वस्तुएं अस्तित्व में आती हैं।"863 शरीर, इन्द्रिय और मन आदि भी पुद्गल स्कन्धों का ही खेल है।
स्कन्धों के भेद -
स्कन्धों की स्थूलता और सूक्ष्मता के आधार पर इनके छह भेद किये गये हैं।864
1. स्थूल-स्थूल :- जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न करने पर स्वतः नहीं मिल सकते हैं
एवं जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। इस वर्ग के
अन्तर्गत पत्थर, लकड़ी, धातु आदि विश्व के समस्त ठोस पदार्थ आते हैं। 2. स्थूल :- जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होने पर स्वयं जुड़ जाते हैं तथा जिन्हें ___ स्थानान्तर किया जा सकता है। जैसे-दूध, पानी, तेल आदि तरल पदार्थ। 3. स्थूल-सूक्ष्म :- जो पुद्गल स्कन्ध छिन्न-भिन्न नहीं किये जा सकते हैं तथा
जिनका ग्रहण या लाना-ले जाना संभव नहीं है। जैसे- प्रकाश, छाया, अन्धकार आदि।
4. सूक्ष्म-स्थूल :- जो स्कन्ध नेत्रों से दिखाई न देने पर भी शेष इन्द्रियों के
द्वारा अनुभव किये जा सकते हैं। जैसे-हवा, गन्ध, रस, शब्द आदि । 5. सूक्ष्म :- जो स्कन्ध इन्द्रियों का विषय नहीं बनते हैं, किन्तु जिनका परिणाम
या कार्य अनुभूति का विषय बनते हैं। जैसे–कार्मण वर्गणा, मनोवर्गणा, भाषावर्गणा आदि।
6. सूक्ष्म-सूक्ष्म :- द्वयणुक आदि से निर्मित छोटे स्कन्ध ।
863 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा - डॉ. सागरमल जैन, पृ. 148 864 नियमसार - गा. 21-24
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