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उपाध्याय यशोविजयजी ने पुद्गल द्रव्य को उपदर्शित करते हुए कहा है कि वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि से सहित होने से पुद्गल द्रव्य शेष धर्म आदि द्रव्यों से भिन्न द्रव्य है | 860
पुद्गल के चार भेद
1. स्कन्ध परमाणुओं का समूह
2. देश स्कन्ध का अपृथक्भूत कल्पित विभाग
3. प्रदेश
स्कन्ध से अपृथक्भूत अविभाज्य अंश
- स्कन्ध से पृथक् निरंश अंश
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4. परमाणु
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स्कन्ध :
दो या दो से अधिक परमाणुओं की संयुक्त अवस्था स्कन्ध कहलाती है । अनेक परमाणुओं के संयोग से स्कन्ध निर्मित होता है। 861 आचार्य पूज्यपाद के अनुसार जो स्थूल रूप से ग्रहण और निक्षेपण की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, वह स्कन्ध है । 802 कम से कम दो परमाणुओं का स्कन्ध होता है। दो परमाणु से द्विप्रदेशी, तीन परमाणु से त्रिप्रदेशी यावत् संख्यात्, असंख्यात् और अनंतप्रदेशी स्कन्ध बनते हैं। हमारे दृष्टिपथ में आने वाले समस्त पदार्थ पौद्गलिक स्कन्ध हैं ।
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डॉ. सागरमल जैन ने लिखा है "पुद्गल द्रव्य समस्त दृश्य जगत का मूलभूत घटक है। यह दृश्य जगत पुद्गल द्रव्य के ही विभिन्न संयोंगों का विस्तार है । अनेक पुद्गल परमाणु मिलकर स्कन्ध और स्कन्धों से मिलकर दृश्य जगत की सभी वस्तुएं निर्मित होती हैं। नवीन स्कन्धों के निर्माण और पूर्व निर्मित स्कन्धों के संगठन और विघटन की प्रक्रिया के माध्यम से ही दृश्य जगत में परिवर्तन घटित
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 10/20
860 वर्णगंधरस फासादिक गुणे
861 उत्तराध्ययनसूत्र,
36/10
862 सर्वार्थसिद्धि,
5/25/574
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