SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 316 (सुरभिगन्ध, दुरभिगन्ध) एवं अष्टस्पर्श (मृदु, कठिन, गुरू, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष) से युक्त तथा रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का एक अंशभूत द्रव्य कहा है। इन आगमों में पुद्गलास्तिकाय द्रव्य के स्वरूप का विश्लेषण द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से किया गया है। द्रव्यतः पुदगलास्तिकाय अनन्तद्रव्य है। प्रत्येक परमाणु एक स्वंतत्र इकाई है। क्षेत्रतः पुद्गलास्तिकाय लोक परिमाण है। कालतः सदा था, है और रहेगा। अतः ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। भावतः पुद्गलास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शयुक्त है। रूपी है। गुणतः पुद्गलास्तिकाय ग्रहण गुणवाला है अर्थात् औदारिक आदि शरीर रूप से ग्रहण किया जाता है तथा स्वयं इन्द्रिय ग्राह्य भी है। उत्तराध्ययन सूत्र में पुद्गल को वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से युक्त बताया गया है। वाचक उमास्वाति के अनुसार पुद्गल वह है जो स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाला है।258 पुद्गल के ये चारों गुण एक साथ रहते हैं। किसी भी समय इन स्पर्शादि में से एक गुण का भी अभाव नहीं रहता है। आचार्य कुन्दकुन्द का कथन है किपुद्गल के सूक्ष्म परमाणु से लेकर महास्कन्ध तक में ये चारों गुण विद्यमान रहते हैं।859 स्पर्श, रस, गन्ध और स्पर्श पुद्गल के लक्षण हैं। इनके बिना पुद्गल का अस्तित्व ही हो नहीं सकता है। 857 उत्तराध्ययन सूत्र – 36/15 858 स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः – तत्त्वार्थसूत्र, 5/23 859 वण्णरसगंधफासा - प्रवचनसार, गा. 2/40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy