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________________ 310 बड़ा होता है। परन्तु वह क्षणवर्ती पर्याय या परिवर्तन सूक्ष्म होने के कारण इन्द्रियग्राह्य नहीं बनती है। उन क्षणवर्ती परिवर्तनों के समूह को ही हम ग्रहण कर पाते हैं अर्थात् दिनवर्ती, मासवर्ती, वर्षवर्ती परिवर्तन (पर्याय) को ही हम ग्रहण कर पाते हैं। अतः दिन, मास, वर्ष के आधार पर ही कहा जाता है कि बच्चा 7 दिन का, 7 मास का या 7 वर्ष का है। इसी प्रकार साड़ी में घटित क्षण-क्षण परिवर्तन के समूह के आधार पर ही साड़ी को 2 दिन, 2 मास या 2 वर्ष पुरानी बताई जाती है। इस प्रकार दिन, मास, वर्ष आदि व्यवहार काल के आधार पर परत्व, अपरत्व, प्राचीनता, नवीनता आदि पर्यायों का या परिवर्तनों का अनुमान लगाया जाता है तथा इन परिवर्तनों के आधार पर इन परिवर्तनों में हेतुभूत (अपेक्षाकारण) काल का अनुमान लगाया जाता है।835 संक्षेप में दिन आदि व्यवहारकाल के द्वारा ही निश्चयकाल अनुमानित किया जाता है। प्राचीनता, नवीनता आदि पर्यायों में अपेक्षाकारण रूप कालद्रव्य चारक्षेत्रप्रमाण अर्थात् अढ़ाईद्वीप प्रमाण ही है। सहायता लेनेवाले जीव-पुद्गल द्रव्यों के समस्त लोकव्यापी होने पर भी सहायक कारण रूप काल द्रव्य चारक्षेत्र प्रमाण है।936 कालद्रव्य को स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में स्वीकार करने पर ही भगवतीसूत्र के इस पाठ "कइणं भंते! दव्वा पन्नता ? गोयमा! छद्दव्वा पण्णता-धम्मात्यिकाए जाए अद्दासमए" के साथ संगति बैठ सकती है। अतः काल भी एक स्वतन्त्र द्रव्य है।837 काल को वर्तना पर्यायों में अपेक्षाकारण नहीं मानने पर तो गति, स्थिति अवगाहन आदि में अपेक्षाकारण के रूप में स्वीकृत धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय को भी स्वतन्त्रद्रव्य के रूप में अस्वीकृत करने का प्रसंग उपस्थित हो जायेगा।838 835 बीजा आचार्य इम भाषइं छइं-जे ज्योतिश्चक्रनइं चारइं परत्व, अपरत्व नव पुराणादि भवस्थिति छइं, तेहy अपेक्षाकारण मनुष्य लोकयां कालद्रव्य छइं. ...........द्रव्यगुणपर्यायनोरास गा. 10/12 का टब्बा। 836 अर्थनई विषइं सूर्यक्रियोपनायकद्रव्य चारक्षेत्रप्रमाण ज कल्पq घटइं. ....... वही, गा.10/12 का टब्बा 837 तो ज श्री भगवतीसूत्रमाहि ................ वही, गा. 10/12 का टब्बा. 1838 अनइं वर्तनापयार्य- साधारण अपेक्षाद्रव्य न कहीइं, तो गतिस्थित्यावगाहना, ............... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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