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________________ 308 पर्याय है। पर्याय में वर्तन करना ही काल है। इसलिए काल द्रव्यरूप न होकर पर्यायरूप है। इस मत की प्रमाणिकता के लिए यशोविजयजी ने जीवाभिगम सूत्र का साक्षी पाठ दिया है – 'किमयं भंते। कालोत्ति पवुच्चइ ? गोयमा। जीवा चेव अजीवा चेव ति' – हे गौतम काल जीवरूप और अजीवरूप है अर्थात् जीव की पर्याय रूप और अजीव की पर्याय रूप है। इस प्रकार निश्चयनय के आधार पर कुछ आचार्यों ने काल को स्वतन्त्र द्रव्यरूप न मानकर जीव और अजीव की भिन्न-भिन्न पर्यायों के रूप में माना है। क्योंकि पर्याय परिणमन द्रव्य की अपनी ही क्रिया या स्वभाव है। इस क्रिया में तत्त्वान्तर द्रव्य की प्रेरणा की आवश्यकता नहीं रहती है। ___काल परमार्थ से द्रव्य नहीं होने पर भी भगवतीसूत्र27 तथा उत्तराध्ययन सूत्र.28 में द्रव्यों की संख्या छह कहने से उस संख्या की पूर्ति के लिए पर्याय में द्रव्य का उपचार करके काल को औपचारिक द्रव्य माना है।929 जैसे – कंगन और कुंडल आदि पर्याय में वास्तविक द्रव्य तो पुद्गल है। परन्तु सुवर्ण, पुद्गलास्तिकाय द्रव्य का पर्याय होने पर सुवर्ण पर्याय में द्रव्य का उपचार करके सुवर्ण को द्रव्य ही कहा जाता है।30 इसी प्रकार जीवाजीव रूप समस्त द्रव्यों की भिन्न-भिन्न पर्यायों में जो वर्तना है, वही काल है। वर्तना पर्यायरूप होने से काल भी पर्यायात्मक ही है। फिर भी पर्याय में द्रव्य का उपचार करके काल को (उपचरित) द्रव्य कहा जाता है। वर्तना लक्षणवाली पर्यायों में द्रव्य का अभेदोपचार करने से काल अनंत है।931 क्योंकि जीव और अजीव अनंत है और उनकी पर्यायें भी अनंत हैं। उन सभी पर्यायों का परिणमन (परिवर्तन) भी अनंत है। चूंकि जीव और अजीव लोकाकाश में सर्वत्र व्याप्त होने से काल द्रव्य भी संपूर्ण लोकाकाशव्यापी है। 827 अ) भगवतीसूत्र, 25/2/9 से 11, 828 उत्तराध्ययन सूत्र, 28/8 829 उपचारप्रकार ज देखाडइं –'षडेव द्रव्याणि ए संख्या पुरणनई - ......द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.10/19 का टब्बा 830 द्रव्यगुणपर्यायनोरास-भाग 2, –धीरजभाई डाह्यालाल महेता, पृ. 504 831 उत्तराध्ययन सूत्र, 28/8 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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