SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 294 धर्मास्तिकाय की उपयोगिता - धर्मास्तिकाय द्रव्य की उपयोगिता दो रूपों में है। 1. गति का सहयोगी कारण। 2. लोक, अलोक की विभाजक शक्ति।80 गौतम के एक प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान महावीर ने कहा -धर्मास्तिकाय से जीवों के आगमन, गमन, बोलना, उन्मेष, मन, वचन, काया की क्रियाएं आदि समस्त भाव निष्पन्न होते हैं। 81 विश्व के सभी चलभाव धर्मास्तिकाय की सहायता से होते हैं। धर्मद्रव्य के अभाव में विश्व अचल ही होता। गति से तात्पर्य केवल एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना ही नहीं, अपितु कंपन, स्पन्दन, धड़कन, झपकना, फैलना आदि भी हैं। इस दृष्टि से धर्मास्तिकाय के अभाव में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं हो सकती है। सभी प्रकार की गति धर्मास्तिकाय की सहायता से ही हो रही है। धर्मास्तिकाय की दूसरी उपयोगिता यह है कि वह लोक और अलोक को विभाजित करता है। अनंत आकाश में अमूक आकाश को लोक के रूप में निश्चित करने के लिए एक विभाजक तत्त्व का होना आवश्यक है और वही धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय है। आकाश के जितने भाग में धर्माधर्म द्रव्य अवस्थित है, वही लोकाकाश कहलाता है। इसी कारण से जीव और पुद्गल द्रव्यों का गमनागमन भी लोकाकाश तक ही होता है। अतः जहाँ धर्म, अधर्म, जीव, पुद्गल द्रव्यों की अवस्थिति हो वह लोकाकाश है और जहाँ इनका अभाव हो वह अलोकाकाश है। पंचास्तिकाय, गा. 87 780 जादो अलोग-लोगो .. 781 भगवतीसूत्र - 13/4/56 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy