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________________ आदि व्यवहार भी अभेद को माने बिना नहीं हो सकता है। द्रव्य और गुण में समवायसम्बन्ध को मानने पर अनवस्था दोष उत्पन्न हो जाता है । अवयव - अवयवी में अभेद को नहीं स्वीकार करने पर गुरूता दुगुणी हो जायेगी। द्रव्य - पर्याय में अभेद को नहीं स्वीकार करने पर पर्यायात्मक कार्य शशशृंगवत् असत् हो जायेगें इत्यादि। इस संदर्भ में नैयायिकों के इस मत की, कि 'भूतकालीन पदार्थ असत् हैं और असत् का स्मरण होता है, अतः असत् से कार्य उत्पत्ति भी हो सकती है' समीक्षा की गई है । भूतकालीन पदार्थ सर्वथा असत् नहीं होता है। पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से असत् होने परभीद्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से सत् है । सर्वथा असत् वस्तु ज्ञान में प्रतिभासित I होती है, ऐसा मानने पर बौद्धों का (योगाचार ) यह मत ही सिद्ध होगा कि संपूर्ण संसार के पदार्थ ज्ञानाकार रूप हैं । प्रत्येक पदार्थ ज्ञान में मात्र आकार के रूप में प्रतिबिम्बित होता है। उससे भिन्न पदार्थ की कोई वास्तविक सत्ता नहीं है। घटपटादि कोई भी ज्ञेय पदार्थ ज्ञान से भिन्न नहीं है। अतीत काल के घट का ज्ञान भी सर्वथा असत् का ज्ञान नहीं है । पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से घट असत् होने पर द्रव्यार्थिक दृष्टि से सत् है, इत्यादि को समझाकर नैयायिकों के एकान्त भेदभाव और सांख्य के एकान्त अभेदवाद को अयुक्तिसंगत बताया है। जैनों का भेदाभेदवाद ही तर्कसंगत है, ऐसा प्रतिपादन किया गया है I 4. चतुर्थ चतुर्थ ढाल में उपाध्यायजी ने द्रव्य - गुण - पर्याय की भेदाभेदता को स्पष्ट करने के लिए प्रयास किए हैं। जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार एक साथ नहीं रह सकते हैं, उसी प्रकार भेद और अभेद भी दो परस्पर विरोधी धर्म होने से एक ही स्थान में कैसे रह सकते हैं ? इस प्रकार शंका उठाकर उसके समाधान में कहा है कि पुद्गलद्रव्य के वर्ण- गन्ध-रस - स्पर्श का ग्रहन अलग इन्द्रियों के द्वारा होने से भिन्न-भिन्न है और एक ही क्षेत्रावगाही होने से अभिन्न है। इसी प्रकार द्रव्य-गुण- पर्याय किसी विशेष अपेक्षा से भिन्न और किसी अपेक्षा से अभिन्न, दोनों Jain Education International 11 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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