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________________ 10 दिये हैं। इस प्रकार यशोविजयजी ने प्रथम ढाल में द्रव्यानुयोग के अभ्यास हेतु विशेष बल दिया है। द्वितीय ढाल - उपाध्याय यशोविजयजी ने दूसरी ढाल में द्रव्य, गुण, पर्याय की परिभाषा को समझाकर रास के विषयवस्तु की ओर संकेत किया है कि प्रस्तुत रास में - 1.द्रव्य-गुण–पर्याय का कथंचित्भेद, 2. द्रव्य-गुण-पर्याय का कथंचित अभेद, 3. द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप की विविधता, 4. उत्पाद-व्यय-ध्रुव रूप तीन लक्षण और उनके भेद, 5. द्रव्य के भेद, 6. गुण के भेद, 7. पर्याय के भेद, आदि की विस्तृत चर्चा की है। मोती, मोती की माला और उसकी उज्ज्वलता के दृष्टान्त से द्रव्य-गुण-पर्याय के. कथंचित भिन्नत्व और कथंचित् अभिन्नत्व को समझाया गया है। ऊर्ध्वसामान्य और तिर्यक् सामान्य को स्पष्ट करके ऊर्ध्वसामान्य के ओघशक्ति और समुच्चित शक्ति ऐसे दो भेद भी किये गये हैं। तृण एवं अचरमावर्त और चरमावर्तवर्ती भव्यजीव के माध्यम से ओघशक्ति और समुच्चितशक्ति का विवेचन प्रस्तुत किया है। दिगम्बर परम्परा की इस मान्यता कि 'गुण में पर्याय को प्राप्त करने की शक्ति है, इसकी सुन्दर समीक्षा भी इसी ढाल के अन्त में की गई। गुण पर्याय से भिन्न कोई वस्तु नहीं है। द्रव्य में गुणों के आश्रय से परिवर्तन होता है। गुण यदि तीसरा पदार्थ रूप मान्य होता तो द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनय की तरह गुणार्थिक नय भी होता। परन्तु ऐसा नहीं होता है। ढाल के अन्तिम गाथाओं में पाँच युक्तियों के द्वारा द्रव्य-गुण-पर्याय में कथंचित् भेद दर्शाया गया है। तृतीय ढाल - तृतीय ढाल में मुख्य रूप से द्रव्य-गुण-पर्याय के कथंचित् अभेदता को समझाया गया है। अभेदता को सिद्ध करने के लिए कुछ युक्तियाँ भी दी हैं, जैसे - अभेद सम्बन्ध को न मायने पर गुण-गुणीभाव ही नहीं रहेगा। ‘सुवर्ण का कुंडल' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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