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________________ द्रव्य का विकार अथवा द्रव्य में परिणमन का तात्पर्य है, द्रव्य के गुणों में परिवर्तन। क्योंकि गुणों से भिन्न द्रव्य की कोई सत्ता नहीं है । द्रव्य अनंत गुणों का समुदायरूप या अखण्ड पिण्ड है । द्रव्य के गुणों का सामुदायिक परिवर्तन ही द्रव्य का परिवर्तन है। 749 जैसे आम्रफल में परिवर्तन होने पर वह कच्चा न रहकर पक जाता है। पक जाने का सीधा अर्थ है आम्रफल के रूप, रस, गंध और स्पर्श आदि गुणों में परिवर्तन होना । आम्रफल का रंग हरे से पीला हो जाता है। उसका स्वाद (रस) खट्टे से मधुर हो जाता है। उसके गंध में भी परिवर्तन होता है। उसका स्पर्श कठोर से कोमल बन जाता है । आम्रफल के इन सभी गुणों में परिलक्षित परिवर्तन ही आम्रफल (द्रव्य) का परिवर्तन है। इस प्रकार द्रव्य के गुणों में होने वाले परिवर्तन को पर्याय कहा जाता है। 750 उपाध्याय यशोविजयजी ने द्रव्य के क्रमभावी गुण-धर्म को पर्याय कहा है। 751 द्रव्य में एक के पश्चात् एक ऐसे क्रम से जो अवस्थान्तर होता है वह पर्याय के नाम से अभिहित किया जाता है। जैसे जीव में मनुष्य, देव, तिर्यंच इत्यादि अवस्थाओं का होना जीवद्रव्य की पर्यायें हैं। रूपादि का कृष्ण, श्वेत आदि के रूप में बदलना पुद्गल द्रव्य की पर्याय है। इसी प्रकार धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय में क्रमशः गमनागमन करने वाले, स्थित रहने वाले नियत क्षेत्र में अवगाहना लेने वाले जीव और पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से जो परिवर्तन होता है, वह उन-उन द्रव्य की पर्यायें हैं। 752 द्रव्य की पर्यायें द्रव्य में सदा नहीं रहती हैं । क्रम से बदलती रहती हैं। 749 जैन तत्त्वविद्या मुनि प्रमाणसागर, पृ. 228 750 सामण्ण विसेसा वि य 751 धरम कहीजइ गुण सहभावी, क्रमभावी पर्यायो रे । 752 क्रमभावी कहतां अयावद्भव्यभावी ते पर्याय कहिइं । जिम जीवनई नरनरकादिक 285 Jain Education International नयचक्र, गा. 17 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/2 द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 2/2 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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