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आश्रय में रहते हैं तथा गुणरहित होते हैं, वे गुण हैं।44 गुणों में पुनः गुणों को स्वीकार करने पर अनवस्था दोष उत्पन्न हो जायेगा। इसलिए द्रव्यनिष्ठ गुण निर्गुण ही होते हैं।
___ द्रव्य के समस्त गुण सदा भिन्न-भिन्न रहते हैं। उनकी अपनी-अपनी पृथक् सत्ता है। एक गुण अपने से भिन्न अन्य गुण के रूप में कभी परिवर्तित नहीं होता है। चेतना गुण रूपादि के रूप में या ज्ञानगुण दर्शनादिगुणों के रूप में परिवर्तित नहीं होता है। 45 चेतनागुण, चेतनागुण ही रहेगा। इस प्रकार द्रव्य की कोई भी शक्ति (गुण) अन्य शक्ति के रूप में बदलती नहीं है। 46 इन अनन्त शक्तियों का पिण्ड ही द्रव्य है। इन गुणों के अतिरिक्त द्रव्य कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है। गुणों का आश्रय द्रव्य है और गुण द्रव्य के आश्रित है।
द्रव्य के पर्याय -
जैन दार्शनिकों ने द्रव्य को उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य लक्षण वाला अथवा गुण और पर्यायवाला कहा है। प्रत्येक द्रव्य में प्रतिक्षण परिणमन होता रहता है। द्रव्य की एक अवस्था का उत्पाद होता है तो वहीं पूर्व अवस्था का व्यय होता है। जैसे- कच्चे आम्रफल का पक जाना, सुवर्णघट से सुवर्णमुकुट बनना, बालक से युवा बनना, जीव का मनुष्य से देव बनना या सुखी-दुःखी बनना। द्रव्य की इन परिणमनशील अवस्थाओं का नाम ही पर्याय है। द्रव्य का विकार ही पर्याय है। 48 उत्पाद और व्यय ही पर्याय है।
744 द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा : तत्त्वार्थसूत्र, 5/40 745 देशस्यैका शक्तिर्या काचित् .. ............. पंचाध्यायी, 1/49 746 एवं यः कोपि गुण ...........
वही, 1/52 747 सन्मति सूत्र, 1/12 748 गुण इति दव्वविहाणं
सर्वार्थसिद्धि, पृ. 237 पर उद्धृत
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