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________________ 283 सामान्य और विशेष गुणों का पिण्ड या समुदाय है।42 जैसे जीव द्रव्य अस्तित्व, प्रमेयत्व आदि सामान्य गुणों का तथा ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि विशेष गुणों का अखण्ड पिण्ड है। द्रव्य के बिना गुण का अस्तित्व नहीं होता है। उसी प्रकार गुण के अभाव में द्रव्य की भी कोई सत्ता नहीं रह सकती है। कोई भी गुण अपने द्रव्य से पृथक् उपलब्ध नहीं होता है। गुण सदैव अपने से अविनाभावी द्रव्य से अभिन्न रहता __गुण अन्वयी होते हैं। द्रव्य के मूलशक्ति (गुण) का नाश कभी नहीं होता है। जैसे जीव का ज्ञान गुण सदा ज्ञान ही बना रहता है, वह कभी अज्ञान में नहीं बदलता है। परन्तु जो ज्ञान प्रथम समय में रहता है वही दूसरे समय में नहीं रहता है। दूसरे समय में वह अन्य प्रकार का हो जाता है अर्थात् अवस्थान्तर हो जाता है। द्रव्य का प्रत्येक गुण अपने स्वरूप में स्थित रहते हुए भी प्रतिक्षण अन्य अन्य अवस्थाओं को प्राप्त होता रहता है। गुणों की इन अवस्थाओं का नाम ही पर्याय है। उदाहरणार्थ रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आम्रफल के गुण हैं। ये गुण आम्रफल में सदा पाये जाते हैं। परन्तु ये रूपादि गुण सदा एक से नहीं रहते हैं। प्रतिसमय बदलते रहते हैं। आम्रफल का रंग बदलकर हरे से पीला या काला हो जाता है। उसका स्वाद खट्टे से मीठा अथवा कसैला हो जाता है। गंध में भी परिवर्तन होता है। स्पर्श बदलकर कठोर से मृदु हो जाता है। इस तरह प्रत्येक द्रव्य के गुणों की अवस्था में प्रतिक्षण प्रतिवर्तन होता रहता है। यह परिवर्तन ही पर्याय कहलाता है। गुण परिवर्तित होते हुए भी अपने मूल स्वरूप से नष्ट नहीं होते हैं। उनकी धारा अविच्छिन्न रहती है। यही गुण की स्थिरता है जो नित्यता की सूचक है। गुण ही द्रव्य के ध्रौव्य पक्ष को बनाये रखता है। इसलिए गुण को अन्वयी कहा जाता है। 43 इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण रहते हैं। वे सभी द्रव्य में आश्रित होकर रहते हैं। उमास्वाति ने गुण को परिभाषित करते हुए यही कहा है - जो द्रव्य के 742 गुण समुदायो द्रव्यमिति । ........ सर्वार्थसिद्धि,5/2 743 अनेकान्ताव्मस्य वस्तुनोऽन्वयिनो विशेष गुणाः ............... पंचास्तिकाय, गा. 10 की टीका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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