SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 282 जीवद्रव्य का जीवद्रव्य के रूप में ध्रुवभाव, पुद्गल द्रव्य का पुद्गलद्रव्य के रूप में ध्रुवभाव, त्रैकालिक ध्रुवभाव होने से सूक्ष्म ध्रुवभाव कहलाता है। दूसरे शब्दों में यावत्कालस्थायी ध्रुवत्व सूक्ष्मध्रुवभाव है। द्रव्य का त्रैकालिक ध्रुवभाव अपनी-अपनी जाति के आधार पर होता है। जीवद्रव्य के गुण-पर्यायों में जीवद्रव्य का अन्वय ही त्रैकालिक ध्रौव्य है। इस प्रकार पाँचों द्रव्य अनादि-द्रव्य होने से सदा सूक्ष्म ध्रुवभाव वाले होते हैं। द्रव्य के गुण : द्रव्य की परिभाषा में द्रव्य को गुण और पर्यायवाला कहा गया है। 38 उपाध्याय यशोविजयजी ने द्रव्य के सहभावी धर्म को गुण कहा है। 39 सहभावी से तात्पर्य है सदा द्रव्य के साथ रहने वाले धर्म। जब तक द्रव्य रहता है, तब तक सदा द्रव्य के साथ ही रहने वाले धर्म को गुण के नाम से अभिहित किया गया है।40 गुण का सामान्य अर्थ है-शक्ति । प्रत्येक द्रव्य में चेतनादि अनेक शक्तियाँ होती हैं। बाह्य कार्यों से हम उन शक्तियों का अनुमान लगाते हैं। इन शक्तियों को ही गुण संज्ञा दी गई है। जैसे जीवद्रव्य का गुण उपयोग है, पुद्गलद्रव्य का गुण पूरण-गलन है। धर्मास्तिकाय का गतिहेतुता, अधर्मास्तिकाय का स्थिति हेतुता, आकाशद्रव्य का अवगाहनहेतुता और कालद्रव्य का वर्तनाहेतुता गुण है।41 भिन्न-भिन्न द्रव्य के भिन्न-भिन्न विशेष गुण हैं। अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व और अगुरूलघुत्व ये छह गुण सभी द्रव्यों के सामान्य गुण है। इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य 737 बीजो-संग्रह ऋजुसूत्र नयनई संमत, ते त्रिकाल व्यापक जाणवो पणि जीव-पुद्गलादिक निज द्रव्यजाति ... वही. 738 गुणपर्यायवत् द्रव्यम् .................. .... तत्वार्थसूत्र, 5/37 739 धरम कहीजइ गुण सहभावी ............................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/2 740 जैन तत्त्वविद्या, – मुनि प्रमाणसागर, पृ. 226 741 जिम-जीवनो उपयोगगुण, पुद्गलनोग्रहणगुण .......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 2/2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy