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प्रायोगिक उदाहरण है- मृत्पिण्ड से घट की उत्पत्ति । मिट्टी के मृत्पिण्ड स्वरूप आकार का नाश होने पर ही घट स्वरूप आकार का उत्पाद होता है। 734 यहाँ मृत्पिण्ड का नाश अर्थान्तरगमन नाश है। इसका वैस्रसिक दृष्टान्त है - बिना प्रयत्न से बरफ का पानी बन जाना ।
उत्पाद और नाश की तरह ध्रुवभाव भी स्थूलध्रुवभाव और सूक्ष्मधुवभाव के रूप में दो प्रकार का होता है। 735
1. स्थूल ध्रुवभाव :
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स्थायी ध्रुवभाव स्थूल ध्रुवभाव कहलाता है। जो पर्याय जितने काल तक स्थिर रहती है उतने काल प्रमाण ध्रुवभाव, स्थूलध्रुवभाव होता है। जैसे जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक मनुष्यादि पर्याय का स्थिर रहना स्थूल ध्रुवभाव है। यद्यपि मनुष्य आदि भाव भी पर्यायरूप होने से प्रतिसमय बदलते रहते हैं अर्थात् उत्पाद-नाश वाले होते हैं, फिर भी स्थूलबुद्धि से एक निश्चित समय तक मनुष्यादि पर्याय स्थिर रहती है, ऐसा ज्ञात होता है। यह नियतकाल प्रमाण ध्रुवता ही स्थूलध्रुवभाव कहलाती है। ऋजुसूत्र नय वर्तमानग्राही होता है। मनुष्य, पशु, पक्षी के रूप में जीव की वर्तमानकालीन पर्यायों की ध्रुवता को मानता है । अतः परिमित कालस्थायी पर्यायों के कालप्रमाण का ध्रुवभाव स्थूल ध्रुवभाव होता है ।
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2. सूक्ष्मधुवभाव :
ध्रुवभाव के इस भेद की व्याख्या संग्रहनय के अनुसार की गई है । द्रव्य का जो ध्रुवभाव तीनों काल में व्याप्त रहता है, वह सूक्ष्म ध्रुवभाव कहलाता है। जैसे
734 बीजो घटोत्पत्तिं मृत्पिंडनाश जाणवो,
735 ध्रुवभाव थूल ऋजुसूत्रनो, पर्यायसमय अनुसार रे, संग्रहनो तेह त्रिकालनो, निज द्रव्य जाति निरधार रे,
736 पहलो - स्थूल ऋजुसूत्र नयनइं अनुसारइं मनुष्यादिक पर्याय, समय मान जाणवो,
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द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/27
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/27
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