________________
हो ऐसा प्रतीत होता है । इसलिए यह अर्थान्तर नाश है | 731 पुद्गल द्रव्य में वर्णादि गुणधर्म का बदलना रूपान्तरनाश है और अणुओं का संयोग-वियोग होना अर्थान्तरनाश है। नाश के ये दो भेद द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के आधार पर किये गये हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि सभी द्रव्य अपनी-अपनी पर्यायों में रूपान्तरित मात्र होते हैं ।
उपाध्याय यशोविजयजी ने 'सन्मतिप्रकरणसूत्र' के आधार पर नाश के अन्य प्रकार से भी दो भेद किये हैं । समुदायजनित नाश, समुदायविभाग और अर्थान्तरगमन के रूप में दो प्रकार का होता है। 732
1. समुदायविभाग नाश :
समुदाय के भंग हो जाने से अंशों का अलग-अलग हो जाना सामुदायिक विभाग नाश है। इसका प्रायोगिक दृष्टान्त है पट से तन्तुओं का अलग हो जाना। 733 अनेक तन्तुओं से निर्मित पट से एक - एक तन्तु को खींचने पर पट का नाश हो जाता है अर्थात् समुदायरूप तन्तुओं का विभाग होने से पट का नाश हो जाना सामुदायिक विभाग नाश है। इसका वैस्रसिक दृष्टान्त है बिना प्रयत्न से बादलों का बिखर जाना ।
2. अर्थान्तरगमन :
अवयवों का विभाग हुए बिना ही द्रव्य का एक स्वरूप से अन्य स्वरूप में इस प्रकार बदल जाना जैसे द्रव्य ही बदल गया हो, यह अर्थान्तरगमन विनाश है। इसका
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-2, धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 463
732 विगमस्स वि एस विही, समुदयजणियम्मि सो 3 दुविअप्पो समुदयविभागमित्तं, अत्यंतरभावगमणं च
731
280
733 ते समुदय विभाग अनइं अथन्तिरगमन ए 2 प्रकार ठहराइ, पहलो तंतुपर्यन्त पटनाश
Jain Education International
सन्मतिप्रकरण सूत्र, गा. 3 / 34
For Personal & Private Use Only
द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/26
www.jainelibrary.org