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________________ 278 नाश के प्रकार : वस्तु प्रतिसमय परिणमनशील है। प्रतिसमय पूर्व-पूर्व पर्यायों का नाश होता रहता है और नवीन-नवीन पर्यायों का उत्पाद होता रहता है। इस कारण से उत्पाद की तरह नाश भी रूपान्तरनाश और अर्थान्तरनाश के रूप में दो प्रकार का होता है। 25 1. रूपान्तरनाश : द्रव्य के पूर्व अवस्था का नाश होकर नवीन अवस्था को प्राप्त करना रूपान्तरनाश है। द्रव्यार्थिक नय के अनुसार जीव, पुद्गल आदि किसी भी द्रव्य का सर्वथानाश नहीं होता है, अपितु कथंचित् रूपान्तर मात्र होता है।26 द्रव्य की एक अवस्था का दूसरी अवस्था के रूप में रूपान्तरमात्र होता है। यशोविजयजी ने इस रूपान्तर नाश को समझाने के लिए अंधकार और प्रकाश का उदाहरण दिया है। 27 सूर्योदय होने पर अंधकार, उद्योत के रूप में बदल जाता है। इस प्रकार अंधकार, उद्योत के रूप रूपान्तर अवस्था को प्राप्त हो जाने से अंधकार का नाश, रूपान्तर नाश कहलाता है। क्योंकि अंधकारमय पुद्गल द्रव्य, उद्योतमय पुद्गलद्रव्य के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में वे पुद्गल कण सूर्य के प्रकाश से परावर्तित होकर चमकने लगते हैं। जैसे रेडियम प्रकाश का संयोग होने पर स्वयं प्रकाशित हो चमकता है। परन्तु पुद्गल द्रव्य तो वही का वही रहता है। केवल पुद्गल द्रव्य के अंधकार रूप पर्याय का उद्योत रूप पर्याय के रूप में रूपान्तर होता है। पुद्गल द्रव्य का सर्वथा नाश नहीं होता है। घट के फूटने पर कपाल, अखण्ड पट को फाड़ने पर खण्डपट, दूध में खटाश डालने से दही का बनना, इत्यादि रूपान्तर नाश के ही उदाहरण हैं। 725 द्विविध नाश पणि जाणिइं, एक रूपांतर परिणाम रे अर्थान्तरभावगमनवली, बीजो प्रकार अभिराम रे .... .............................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/24 726 कथंचित् 'सत्' रूपान्तर पामइं, सर्वथा विणसई नहीं .... .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/24 .... 727 अंधकारनइ उद्योतता, रूपान्तरनो परिणाम रे द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/25 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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