SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 276 भी निमित्त के रूप में कोई न कोई संयोग अवश्य रहता है। परन्तु सिद्धसेन आदि जैन दार्शनिकों का कहना है कि उत्पाद संयोग और वियोग दोनों से होता है। जैसे द्वयणुक और एक परमाणु के संयोग से त्र्यणुक का उत्पाद होता है वैसे ही त्र्यणुक के विभक्त होने से परमाणु का उत्पाद होता है। 21 जीव और पुद्गल द्रव्यों में उत्पाद के प्रकारों का स्पष्टीकरण करने के पश्चात् यशोविजयजी ने धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशस्तिकाय में उत्पाद के प्रकारों की चर्चा की है। क्योंकि धर्म आदि भी द्रव्य (सत्) होने से उत्पाद आदि लक्षण तो होंगे ही और उत्पाद आदि लक्षण होने से उनके प्रकार भी अवश्य होंगे ही। धर्म, अधर्म और आकाश इन द्रव्यों में गति, स्थिति और अवकाश करने वाले जीव तथा पुद्गलों को सहायक बनने के रूप में जो उत्पाद होता है वह ऐकत्विक विनसा उत्पाद है। इन द्रव्यों में गतिभाव के रूप में, स्थितिभाव के रूप में तथा अवगाहकभाव के रूप में परिणत जीव और पुद्गलों का संयोग रूप उत्पाद होता है। यह संयोग पूर्वकाल में नहीं था। जैसे ही जीव–पुदगल द्रव्यों गति आदि भाव के रूप में परिणत होने पर धर्म आदि का जीव–पुद्गल के गति आदि में सहायक बनने के रूप में संयोग होता है। इस प्रकार धर्म आदि द्रव्यों के साथ जीव-पुद्गल द्रव्यों का असंयुक्तावस्था के नाशपूर्वक संयुक्तावस्था के रूप में उत्पाद होता है। यहाँ द्रष्टव्य है कि धर्म आदि अखण्ड और एक द्रव्यों के साथ जीव-पुद्गलों का (इन द्रव्यों के गति आदि में सहायक बनने से) जो संयोग होता है, वह संयोग मृत्पिण्ड की तरह स्कन्ध रूप न होकर राइदानों के समूह की तरह मात्र संयोग रूप ही होता है।723 इस प्रकार धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशस्तिकाय के साथ जीव-पुद्गल 721 दव्वंतरसंजोगहि, केई दवियस्स विंती उप्पायं उप्पायत्थाऽकुसला, विभागजायं ण इच्छन्ति अणु दुअणुएहिं दव्वे आरद्धे ति अणुअं ति ववएसो तत्तो अ पूण विभत्तो, 'अणु' ति जाओ अणू होई ... 722 विण खंध हेतु संयोग ज, पर संयोगइं उत्पाद रे द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.9/22 723 जिम परमाणुनो उत्पाद एकत्वज, तिम जेणइं संयोगईं स्कंध न नीपजइं ............. द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/22 सन्मतिसूत्र गा. 3/38,39 ३ ....... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy