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विनसा उत्पाद का उदाहरण है।19 इसी प्रकार काँच का प्याला टूट जाने पर एक-एक खंड के रूप में काँच खण्डों का उत्पाद होना भी ऐकत्विक विश्रसा उत्पाद है। प्रदेश विभागजन्य यह ऐकत्विक उत्पाद पुद्गल द्रव्यों में ही होता है। क्योंकि स्कन्ध, प्रदेश का विघटन पुद्गलास्तिकाय में ही संभव हो सकता है। अन्य जीवादि द्रव्य अखण्ड द्रव्य होने से उनके प्रदेशों का विघटन कदापि संभव नहीं है।
जीव और कर्म के अनादि संयोग का वियोग होने से सिद्धावस्था का उत्पाद भी ऐकत्विक विस्रसा उत्पाद है। 20 अनादिकालीन संयोग के कारण जीव और कर्म लोहाग्नि की तरह एकमेव बन जाते हैं। परन्तु जीव जब मुक्तावस्था को प्राप्त होता है, उस समय जीव और कर्म के अनादिकालीन संयोग का वियोग होकर दोनों अलग-अलग हो जाते हैं तथा जीव की सिद्धावस्था का उत्पाद होता है। जीवद्रव्य का सिद्ध के रूप में अर्थात् कर्म से स्वतन्त्र अवस्था के रूप उत्पाद होने से यह ऐकत्विक विनसा उत्पाद है।
_इस प्रकार अवयवों के संयोग से होने वाला अप्रयत्नजन्य उत्पाद समुदायजनित विस्रसा उत्पाद है तथा अवयवों के वियोग से होने वाला अप्रयत्नजन्य उत्पाद ऐकत्विक विस्रसा उत्पाद है अर्थात् अलग-अलग होकर एक-एक के रूप में उत्पाद होना ऐकत्विक विस्रसा उत्पाद है।
नैयायिक दर्शनकारों ने अवयवों के संयोग से होने वाले उत्पाद को ही मान्यता दी है। उनके अनुसार विभाग से उत्पत्ति होती नहीं है, अपितु किसी भी महास्कन्ध का पहले आपरमाण्वन्त भंग होता है। उसके पश्चात् अणुओं के संयोग से महाद्रव्य की उत्पत्ति होती है। परन्तु सीधे विभाग से उत्पाद नहीं होता है। संयोग के कारण ही द्रव्य की सत्ता होती है। महापट के विभाग से खंडपट होने पर खंडपट की सत्ता विभाग के कारण नहीं है, किन्तु तन्तुओं के संयोग के कारण है। पुनः विभाग होने में
719 जिम द्विप्रदेशादिक स्कन्ध विभागई अणुपणु कहतां परमाणु द्रव्यनो उत्पाद
द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/21 720 तथा कर्मविभागडं सिद्धपर्यायनो उत्पाद
............... वही.
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