________________
कहा जाता है। इस प्रकार अनेक प्रदेशजन्य उत्पाद होने से इसे अशुद्ध उत्पाद कहा जाता है। 714 सन्मतिसूत्र में भी प्रयोगज उत्पाद को लगभग ऐसा ही व्याख्यायित किया गया है | 715
ब. विस्रसा :
किसी के प्रयत्न के बिना स्वाभाविक रूप से होने वाले उत्पाद को विस्रसा उत्पाद कहा जाता है। जैसे बादल। यह विस्रसा उत्पाद समुदायजनित विस्रसा उत्पाद और ऐकत्विक विस्रसा उत्पाद के रूप में दो प्रकार का होता है | 716 सन्मतिप्रकरण में भी विस्रसा उत्पाद के यही दो भेद किये हैं।717
1.
समुदायजनित विसा उत्पाद
पाँच, पच्चीस, संख्यात, असंख्यात् और अनंतप्रदेशों का स्वतः संयोग होने से जो उत्पाद होता है, वह समुदायजनित विस्रसा उत्पाद है। जैसे- बादल, इन्द्रधनुष, पर्वत आदि । किसी भी कर्त्ता के किसी भी प्रकार के प्रयत्न के बिना सहजरूप से पुद्गल स्कन्धों के पिंडीभूत होने से अर्थात् अलग-अलग रहनेवाले अवयवों के मिल जाने से इन पदार्थों का उत्पाद होता है । अतः यह उत्पाद समुदायजनित विस्रसा उत्पाद है। पुनः इस उत्पाद को यशोविजयजी ने तीन प्रकार का बताया है -
-
714 पहिलो उत्पाद ते व्यवहारनो छइ ते माटइं अविशुद्ध कहिइं, ते निर्द्धार समुदायवादनो तथा यतन करी अवयव संयोगइं सिद्ध कहिइं
715 उपाओ दुविअप्पो, पओगजणिओ अ वीससा चेव तत्व य पओगजणिओ, समुदयवाओ अपरिभुद्धे 716 सहजइ थाइ, ते वीससा, समुदय एकत्व प्रकार रे 717 साहाविओवि समुदायकओव्व एगत्तिओव्व होजाहि
Jain Education International
273
द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/19
सन्मतिप्रकरण सूत्र गा. 3 / 32
• द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/20 सन्मतिप्रकरण सूत्र, गा. 3 / 33
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org