SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 271 धर्म, अधर्म, आकाश आदि द्रव्य व्यवहार नय से अपरिणामी और निश्चय नय से परिणामी है। इसका तात्पर्य यह है कि धर्मास्तिकाय आदि तीन द्रव्य जीव, पुद्गल की तरह परद्रव्यों का संयोग पाकर परभाव में परिणमित नहीं होते हैं। परन्तु अवगाहना, गति, स्थिति आदि करने वाले जीव, पुद्गल के परिणमन के आधार पर उनमें सहायक बनने के रूप में धर्म आदि तीन द्रव्यों में भी परिणमन होता है। आकाश में चाहे सुगन्धित पदार्थ हो चाहे असुगन्धित पदार्थ हो, चाहे मनुष्य निवास करे या पशु, परन्तु आकाश जैसे का जैसा रहता है। आकाश उन-उन भावों में परिणमित नहीं होता है। परन्तु आकाश में अवकाश लेने वाले जीव, पुद्गल आदि जैसे-जैसे बदलते हैं, वैसे-वैसे आकाश भी उनको अवकाश देने में सहायक बनने के रूप में बदलता है। इस प्रकार धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाश परद्रव्य के संयोग से उत्पाद-व्यय वाले बनते हैं। एक ही समय में गति, स्थिति और अवकाश करने वाले अनंत जीव और अनंत पुद्गल द्रव्यों के आधार पर इन तीनों द्रव्यों में भी उन जीव, पुद्गल द्रव्यों के गति, स्थिति और अवकाश में सहायक बनने के रूप में अर्थात् परप्रत्यायिक के रूप में उत्पाद और व्यय होते हैं।10 ___ इस प्रकार जीव और पुद्गल द्रव्य के व्यवहारनय से परिणार्मी होने से प्रतिसमय परिणमित होने के रूप में स्वद्रव्यनिमित्तक जितनी पर्यायें होती हैं, उतने उत्पाद और व्यय होते हैं तथा धर्म, अधर्म और आकाश व्यवहारनय से अपरिणामी होने पर भी परद्रव्यनिमित्तक जितनी पर्यायें होती हैं उतने ही उत्पाद और व्यय उनमें भी होते हैं। संक्षेप में पांचों द्रव्यों में स्वद्रव्य और परनिमित्तक अनन्त पर्यायें होने से उत्पाद और व्यय भी अनंत होते हैं। उत्पाद और व्यय के अनंत होने पर पूर्वापर पर्यायों में अन्वय के रूप में अथवा आधारांश बनने के रूप में ध्रौव्य भी अनंत हैं।11 710 तथा परपर्यायइं आकाश धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय ये 3 द्रवयनइं ऐककालई घणाई संबंधइ-बहुप्रकार उत्पत्ति नाश संभवइ ... .. वही. 711 निज पर पर्याय एकदा. बहसंबंधड बह रूप रे उत्पत्ति नाश इम संभवइ, नियमइ तिहां ध्रौव्य स्वरूप रे .......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/18 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy