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आकार के रूप में नाश और अतीताकार के रूप में उत्पाद होने पर भी आकारी अर्थात् केवलज्ञान-दर्शन ध्रौव्य ही रहते हैं। इस प्रकार सिद्धों का केवलज्ञान और केवल दर्शन जगतवर्ती ज्ञेय के आकारों में प्रतिसमय परिवर्तित होता रहने से सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय (एक समयवर्ती पर्यायग्राही) से सिद्ध परमात्माओं में भी प्रतिसमय उत्पाद–व्यय-ध्रौव्य घटित होते रहते हैं। 05
सिद्धात्माओं के निराकार गुणों जिनमें ज्ञेय का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता है क्षायिकभावजन्य होने से जिनमें हानि-वृद्धि नहीं होती है जो सदा स्थिर और एक समान दिखाई देते हैं ऐसे सम्यकत्व, अनंतवीर्य, अनंतचारित्र इत्यादि में भी उत्पाद आदि विलक्षण समय-समय के सम्बन्ध से घटित होते हैं।06
प्रथमसमयावच्छिन्नगुण, द्विसमयावच्छिन्नगुण, त्रिसमयावच्छिन्नगुण इत्यादि के रूप में इन गुणों में भी काल के सम्बन्ध से प्रतिसमय परिवर्तन होता रहता है। सिद्धावस्था प्राप्ति के प्रथमसमय में जो क्षायिक सम्यक्त्व आदि गुण होते हैं, उनका अस्तित्व उस समय प्रथमसमयावच्छिन्न के रूप में होता है। द्वितीय समय में क्षायिक सम्यक्त्व आदि गुणों का अस्तित्व प्रथमसमयावछिन्न नहीं रहता है। क्योंकि द्वितीय समय में प्रथमसमयावच्छिन्न गुणों को सिद्धात्मा में रहते हुए एक समय व्यतीत हो जाने से वे क्षायिक सम्यक्त्व आदि गुण द्वितीय समय में द्वितीयसमयावच्छिन्न बन जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्धावस्था प्राप्ति के द्वितीय समय में क्षायिक सम्यक्त्व आदि गुणों का प्रथमसमयावच्छिन्न के रूप में व्यय और द्वितीयसमयावच्छिन्न के रूप में उत्पाद होता है। प्रथमसमयावच्छिन्न और द्वितीयसमयावच्छिन्न ऐसा विशेषण रहित विचार करने पर क्षायिक सम्यकत्व आदि
704 प्रथमादिसमइं-वर्तमानकार छइं, तेहनो द्वितीयादिक्षणइं नाश,
अतीताकाराइं उत्पाद, आकारभावई केवलज्ञान, केवलदर्शनभावइं केवल मात्र भावइं ध्रुव, इम भावना करवी ..........
.......................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा.9/16 705 जे ज्ञानादिक-केवलज्ञान केवलदर्शन, निज पर्यायइं, ज्ञेयाकाराई वर्तमानादिविषयाकारइं परिणमइ ...
....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा.9/16 706 इम जे पर्याय परिणमइ, क्षणसंबंध छड पणि भाव रे
तीथी तियलक्षण संभवइ, नहीं तो ते थाइ अभाव रे ......................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/17
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