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________________ 268 सिद्धात्माओं में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य - मुक्तिगमन के प्रथमसमय सिद्धात्मा का केवलज्ञान-दर्शन जगतवर्ती समस्त पदार्थों को जानता और देखता है। उस समय वह जानने-देखने रूप पर्याय का वर्तमान आकार के रूप में उत्पाद होता है। जब द्वितीयक्षण आता है तब जानने-देखने रूप प्रथमक्षण की उस पर्याय का वर्तमान आकार के रूप में नाश होता है और अतीताकार के रूप में उत्पाद होता है। क्योंकि द्वितीय समय में जानने-देखने रूप जो प्रथमक्षण की पर्याय थी, वह वर्तमान न रहकर अतीत बन जाती है। इसलिए उस पर्याय का अतीताकार के रूप में उत्पाद और वर्तमान आकार के रूप में नाश होता है। तृतीयक्षण में द्वितीयक्षण की जानने-देखने रूप पर्याय का वर्तमानाकार के रूप में नाश होगा और अतीताकार के रूप में उत्पाद होगा तथा प्रथमक्षणवर्ती जानने-देखने रूप पर्याय का एक समय पूर्व अतीत पर्याय के रूप में नाश होगा और दो समय पूर्व अतीत पर्याय के रूप में उत्पाद होगा। तृतीय क्षण में जानने-देखने रूप वर्तमान पर्याय बनती है। इस प्रकार सिद्धात्माओं में भी उनके केवलज्ञान और केवलदर्शन में प्रतिसमय उत्पाद आदि तीनों लक्षण होते हैं। उदाहरणार्थ सिद्ध परमात्मा केवलज्ञान-दर्शन में कुलाल के द्वारा मृत्पिण्ड को घट के रूप में अन्तिम आकार देते हुए जानते-देखते हैं। द्वितीय क्षण में जब पूर्ण घट निर्मित हो जाता है, उस समय प्रथमक्षण की पर्याय अर्थात घट को अन्तिम आकार देते हुए जानने-देखने रूप पर्याय का वर्तमान पर्याय के रूप में नाश और अतीत पर्याय के रूप में उत्पाद हो जाता है। तृतीयक्षण में पूर्ण घट कुलाल के हाथ से गिर जाने से उसका पुनः मृत्पिण्ड बन जाता है। इस तृतीय क्षण में द्वितीय क्षण की पर्याय अर्थात् पूर्णघट को देखने-जानने रूप पर्याय का अतीत पर्याय के रूप में उत्पाद और वर्तमान पर्याय के रूप में नाश होता है। मृत्पिण्ड को जानने-देखने रूप तृतीय क्षण की पर्याय का वर्तमान पर्याय के रूप में उत्पाद होता है। प्रथम क्षण में जो वर्तमान के रूप में जानने-देखने की पर्याय थी, वही द्वितीय क्षण में वर्तमान पर्याय के रूप नष्ट होती है और अतीतपर्याय के रूप में उत्पन्न होती है। वर्तमान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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