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________________ 267 केवलज्ञान । अन्यथा क्षायिकभाववाला और सादि अनंत होने से केवलज्ञान के प्रतिभेद हो ही नहीं सकते हैं।'02 जिस समय आत्मा सर्व कर्मों को क्षय करके निर्वाण को प्राप्त करती है, उस समय सशरीर के रूप में व्यय और अशरीर के रूप में उत्पाद लोकगम्य है। परन्तु सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होने के पश्चात् जन्म-मरण रूप क्रियाएं, देव नारक रूप पर्यायें, बाल-युवारूप अवस्थाएं, गुरू-लघु के रूप में रूप आदि बाह्य कोई भी परिवर्तन नहीं दिखाई देने से तथा क्षायिक भाव जन्य केवलज्ञानादि गुण भी पूर्ण होने से उनमें भी हानि-वृद्धि नहीं होने से मुक्तात्मा में उत्पाद आदि लक्षण कैसे घटित होते हैं ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए यशोविजयजी कहते हैं -द्रव्य किसी भी अवस्था में क्यों न हो प्रतिक्षण उनमें उत्पाद आदि लक्षण निहित होते हैं। ऐसा नहीं होने पर तो द्रव्य का अस्तित्व गुण (सत्पन) ही खतरे में पड़ जायेगा। __सिद्धात्माओं के केवलज्ञान-दर्शन रूप गुणात्मक पर्यायों में जगतवर्ती समस्त ज्ञेय पदार्थों का प्रतिबिम्ब पड़ता है। प्रतिसमय जगत् के ज्ञेय पदार्थ जैसे-जैसे परिणमित होते हैं, वैसे-वैसे उन ज्ञेय पदार्थों को जानने-देखने रूप सिद्धात्माओं के केवलज्ञानदर्शन भी प्रतिसमय बदलता रहता है। इस तरह सिद्धात्माओं में भी प्रतिसमय उत्पाद–व्यय होता रहता है।03 वर्तमानकालीन, अतीतकालीन और भविष्यकालीन ज्ञान–पर्याय के रूप में उत्पाद और व्यय होता रहता है, क्योंकि प्रतिक्षण उपयोग के आश्रय से परिवर्तन आता है। यशोविजयजी ने इसके लिए व्यतिरेक शब्द का प्रयोग किया है अर्थात् केवलज्ञान और केवलदर्शन रूप उपयोग अन्य-अन्य के अवस्थाओं में भेद को प्राप्त होता है। अतः उनमें भी भेद और अभेद दोनों ही एक साथ हैं। ....................... द्रव्यगुणपर्यानोरास का टब्बा, गा.9/15 702 ए भाव लेइनइं "केवलनाणे दुविहे पन्नते, 703 जे ज्ञेयकारइ परिणमइ, ज्ञानादिक निजपर्याय व्यतिरेकइ तेहथी सिद्धनइ, तियलक्षण इम पणिथाइ रे .. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/16 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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