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वह वर्तमानता है और निष्ठाकाल के परिणामस्वरूप जो है, वह अतीतता है। इन वर्तमानता और अतीतता की एक साथ विवक्षा करने पर 'नश्यति नष्टः' अर्थात् एक समय में वस्तु नाश भी हो रही है और नष्ट भी है । 'उत्पद्यते उत्पन्नः’ विवक्षित समय में वस्तु उत्पन्न भी है और उत्पन्न हो भी रही है। अतः निश्चयनय की दृष्टि से क्रियाकाल और निष्ठाकाल एक होने से अथवा प्रारंभ और समाप्ति एक साथ होने से वर्तमानता और अतीतता की भी एक साथ विवक्षा हो सकती है। इस प्रकार उत्पन्न होती हुई वस्तु को उत्पन्न और नष्ट होती हुई वस्तु को नष्ट कहने पर कोई विसंगति नहीं आती है। 693
नाश और नाश की उत्पत्ति में भेद नहीं है । क्योंकि जिस समय में नाश होता है उसी समय में नाश की कुछ उत्पत्ति भी होती है। इसके पूर्व समय तक नाश नहीं होने से नाश का प्राग्भाव होता है और नाश होते ही नाश के प्राग्भाव का ध्वंस हो जाता है अर्थात् नाश की उत्पत्ति हो जाती है। 694 ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का नाश बारहवें गुणस्थान के चरम समय में प्रारम्भ होता है और उसी चरम समय में समाप्त भी हो जाता है अर्थात् नाश और नाश की उत्पत्ति दोनों बारहवें गुणस्थान के चरमसमय में ही होता है। इतना ही नहीं केवलज्ञान की प्राप्ति भी बारहवें गुणस्थान के चरम समय में ही होता है तथा वही तेहरवें गुणस्थान का प्रथम समय भी है
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क्रियाकाल और निष्ठाकाल की अभिन्नता को ऐसा समझाते हुए यशोविजयजी कहते हैं कि - मृत्पिण्ड के नाश से लेकर घट की उत्पत्ति तक के सर्व समयों में जिस प्रकार पूर्वपर्याय ( मृत्पिण्ड ) का नाश पारमार्थिक है उसी प्रकार प्रतिसमय उत्तरपर्याय (घट) की उत्पत्ति भी अंश - अंश रूप से पारमार्थिक है। अन्यथा प्रतिसमय केवलनाश को मानकर उत्पत्ति को नहीं मानने पर तो कभी भी कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती है । क्रियाकाल में मात्र नाश और कार्य की उत्पत्ति को निष्ठाकाल में ही
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1693 क्रिया निष्ठापरिणारूप वर्तमानत्व - अतीत्व लेइ
द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/12 694 तो व्यवहारं - उत्पत्तिक्षणसंबंधमात्र कहो तिहां प्रागभावधंसना कालत्रयथी कालत्रयणो अन्वय कहो
.. वही, गा 9 / 12 का टब्बा
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द्रव्यगुणपर्यायनोरास - धीरजभाइ डाह्यालाल महेता, पृ. 423
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