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द्रव्य का अन्वय होने से द्रव्य के रूप में उन उत्पादों और व्ययों का सम्बन्ध तिरोभावरूप से अन्य समय में भी रहता है।
प्रथमक्षणवर्ती उत्पाद और व्यय द्वितीयादि क्षण में तिरोभाव रूप से विद्यमान रहने से ही 'यह घट उत्पन्न हुआ है', 'यह घट नष्ट हुआ है' ऐसा दिखाई देता है
और व्यवहार भी किया जाता है।687 प्रथमक्षणवर्ती उत्पाद-व्यय का द्वितीय आदि समय में तिरोभाव के रूप में नहीं होने पर तो अर्थात् उत्पत्ति और नाश के बिना तो उत्पन्न और नष्ट का व्यवहार ही नहीं हो सकता है। परन्तु 'यह घट उत्पन्न हुआ है', 'यह नष्ट हुआ है' ऐसा व्यवहार होते दिखाई देता है। इसलिए प्रथम समय सम्बन्धी उत्पाद-व्यय, द्वितीयादि समय में भी अवश्य विद्यमान रहते हैं। परन्तु इसमें विशेषता इतनी है कि प्रथमसमयावच्छिान्न विशेषणवाला उत्पाद-व्यय प्रथमक्षण में ही आविर्भाव रहते हैं। द्वितीयादि समय में उनका आविर्भाव नहीं रहता है। द्वितीयादि क्षण में तो द्वितीयादि क्षण विशिष्ट उत्पाद-व्यय का ही आविर्भाव रहता है। इसलिए द्वितीयादि क्षण में इदानीमुत्पन्नः, इदानीं नष्टः ऐसा प्रयोग नहीं हो सकता है।688
जिस समय में मृत्पिण्ड से घट निर्मित होता है, उसी समय मृत्पिण्ड का नाश और घट का उत्पाद होता है। पर्यायार्थिक नय से प्रथमक्षणवर्ती इन उत्पाद और नाश का अस्तित्व मात्र प्रथमक्षणवर्ती होने पर भी द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से ये (प्रथमक्षणवर्ती) उत्पाद और नाश तिरोभावरूप से द्वितीयादि शेष समय में भी अन्वय रूप से रहते हैं। यदि प्रथमक्षणवर्ती उत्पाद और व्यय द्वितीयादि क्षण में तिरोभाव के रूप में नहीं रहते हैं तो द्वितीयादि क्षण में 'घट उत्पन्न हुआ', 'मृत्पिण्ड का नाश हुआ ऐसा भूतकाल विषयक बोध होगा ही नहीं।689
687 पहिला-प्रथमक्षणइं यथा, जे उत्पत्ति-नाश, ते ध्रुवतामांहि भल्या ......
..............द्रव्यगुणपर्यानोरास का टब्बा, गा. 9/10 688 'इदानीमुत्पन्नः नष्टः" इम कहिइं, तिवारइं-एतत्क्षण-विशिष्टता .... वही, 689 उत्पत्तिनाशनइ अनुगमइ, भूतादिक प्रत्यय भान रे पर्यायारथथी सवि घटइ, ते मानइ समय प्रमाण रे
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/11
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