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करने की आवश्यकता नहीं रहती है। फिर भी अधिक स्पष्ट करने के लिए अनुभव आदि प्रमाण से भी सिद्ध किया जाता है।685
__ पदार्थ में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप त्रिलक्षण प्रतिसमय होता है। एक भी समय ऐसा नहीं होता है जब पदार्थ में त्रिलक्षण नहीं हो या न्यूनाधिक हो। यहाँ एक प्रश्न उठ सकता है कि जिस समय मृत्पिण्ड से घट, तन्तु से पट, सुवर्णघट से सुवर्णमुकुट, दूध से दही, इत्यादि कोई भी पदार्थ उत्पन्न होते हैं या बनते हैं उस समय में ही उत्पाद और नाश होता है। शेष समय में ध्रौव्य नामक एक लक्षण ही दिखाई देता है। जैसे मृत्पिण्ड से घट बनने पर प्रथम समय में ही मृत्पिण्डनाश और घटोत्पाद दिखाई देता है, उसके बाद द्वितीय समय से लेकर जब तक घट फूटता नहीं है, तब तक घट सर्वसमय में जैसा का तैसा ही रहता। उसमें न कोई बदलाव या परिवर्तन होता है और नहीं कोई उत्पाद और व्यय परिलक्षित होते हैं। ऐसे में घट आदि पदार्थ में प्रतिसमय ध्रौव्य लक्षण ही घटित होता है। उत्पाद आदि त्रिलक्षण कैसे घटित होते हैं ?
पदार्थ में प्रतिसमय त्रिलक्षण को सिद्ध करते हुए उपाध्याय यशोविजयजी कहते है –प्रथम क्षण में जो उत्पाद और नाश होता है, वह आविर्भाव (प्रगट) रूप से होता है और दूसरे आदि समय में जो उत्पाद और नाश होता है वह पदार्थ में अनुगमशक्ति से अर्थात् एकताशक्ति से रहते हैं।686 प्रथम क्षणवर्ती उत्पाद और नाश द्वितीय आदि क्षण में आविर्भाव के रूप में अविद्यमान होने पर भी उपलक्षण से अर्थात् तिरोभाव रूप से अवश्य विद्यमान रहते हैं। प्रथम क्षण में जिस मृद्रव्य में मृत्पिण्डनाश और घटोत्पाद हुआ था वही मृद्रव्य द्वितीयादि समय में भी विद्यमान रहता है। इस प्रकार द्रव्य की पूर्वापर समय में एकता होने से तथा सभी समय में
685 तथा रूपइ सद्व्यवहार साधवा अनुमानादिक प्रमाण अनुसरिइं छइ ........
.... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/9 686 उत्पन्नघटइ निजद्रव्यना, उत्पत्ति नाश किम होइ रे।
सुणि ध्रुवतामा पहिला भलिया, छइ अनुगतशक्ति होइ । । ............ द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/10
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