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________________ 258 जिस व्यक्ति को अगोरस खाने की प्रतिज्ञा होती है, वह पुरूष दूध और दही दोनों को नहीं खाता है। क्योंकि दूध का नाश और दही का उत्पाद होने पर भी गोरसपना तो ज्यों का त्यों बना रहता है। गोरस के रूप में दूध और दही का अभेद है।79 दही भी गोरस है और दूध भी गोरस ही होने से अगोरसवती पुरूष दूध और दही दोनों का सेवन नहीं करता है। प्रस्तुत उदाहरण में दूधकाल में दही को नहीं माना गया है। परन्तु दहीकाल में दूध का नाश और दही का उत्पाद दोनों एक ही साथ माना गया है और दूध और दही में गोरसपने की ध्रुवता भी सिद्ध की गई है। इस प्रकार दही के रूप में उत्पाद, दूध के रूप में नाश और गोरस के रूप में ध्रौव्यता, ये तीनों लक्षण प्रत्यक्ष प्रमाण से अनुभव सिद्ध होने से संसार का प्रत्येक पदार्थ त्रयात्मक है। उपाध्याय यशोविजयजी ने पदार्थ को त्रयात्मक रूप से सिद्ध करने के लिए हरिभद्रसूरिकृत 'शास्त्रवार्तासमुच्चय' नामक ग्रन्थ का एक श्लोक भी उद्धृत किया है। यथा - पयोव्रती न दध्यति, न पयोत्ति दधिव्रतः। अगोरसवती नोभे, तस्माद् वस्तु त्रयात्मकम् ।।880 इसी भावार्थवाला समान श्लोक समन्तभद्र प्रणीत ‘आप्तमीमांसा' नामक ग्रन्थ में भी उपलब्ध होता है। यथा - पयोव्रतो न दध्यति न पयोत्ति दधिव्रतः। अगोरसतो नोभे तस्मात्तत्वं त्रयात्मकम्।।681 अन्वयी और व्यतिरेकी स्वरूप के आधार पर समस्त पदार्थ त्रिलक्षण से युक्त हैं। द्रव्यदृष्टि से पदार्थ अन्वयीस्वरूपवाला अर्थात् ध्रौव्यस्वरूपवाला और पर्यायदृष्टि से व्यतिरेकी स्वरूपवाला अर्थात् उत्पाद-व्यय स्वरूप वाला होता है।82 परन्तु 67' तथा अगोरस ज जिमुं, एहवा व्रतवंत दूध-दही-2 न जिमई. ..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टबा, गा. 9/9 680 शास्त्रवार्तासमुच्चय, श्लोक 9/3 68l आप्तमीमांसा, श्लोक. 60 682 अन्वयीरूप अनइ, व्यतिरेकीरूप, द्रव्य पर्यायधी सिद्धान्तविरोधइं सर्वत्र अवतारीनइ 3 लक्षण कहवां .... ............... द्रव्यगुणपर्यानोरास का टब्बा, गा. 9/9 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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