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को नहीं खाता है और दहीव्रती पुरूष दुग्ध को नहीं खाता है। परन्तु अगोरसवती पुरूष दुग्ध और दही दोनों को नहीं खाता है। इसका तात्पर्य है कि दूध का नाश, दही का उत्पाद और गोरस का ध्रौव्य वास्तविक है। इसलिए जगत का प्रत्येक पदार्थ इन तीनों लक्षणों से युक्त है।76 .
जो व्यक्ति संपूर्ण दिवस दूध खाने का ही व्रत या प्रतिज्ञा लेता है, वह दुग्धव्रती पुरूष संपूर्ण दिवस दूध को ही खाता है। परन्तु दही को दूध से भिन्न मानकर उसे नहीं खाता है। वास्तविकता यह है कि दूध में खटास डालने पर दूध ही दही के रूप में रूपान्तरता को प्राप्त होता है। दही, दूध का ही परिणाम है। अवस्थान्तर या प्रकारान्तर को प्राप्त दूध ही दही कहलाता है। फिर भी संसार का कोई भी दुग्धव्रती पुरूष दही और दूध को अभिन्न मानकर दही को नहीं खाता है और यदि खाता है तो दुग्धव्रत की प्रतिज्ञा भंग हो जाती है। क्योंकि अब दही में दूधपना नहीं रहा अर्थात् दूध का नाश हुआ है। इस प्रकार दही काल में दूध का नाश हो जाने से दुग्धव्रती दही को नहीं खाता है।
इसी प्रकार जिस व्यक्ति ने संपूर्ण दिवस दधि मात्र खाने की प्रतिज्ञा ले रखी है, वह दहीव्रती पुरूष दूध और दही को अभिन्न मानकर दूध का सेवन नहीं करता है और दूध के सेवन से दहीव्रत का भंग हो जायेगा, ऐसा मानता है। यद्यपि दही दूध से भिन्न कोई नवीन द्रव्य नहीं है; दूध का ही परिणाम और रूपान्तर है। फिर भी दूध को दही नहीं कहा जाता है। दूध और दही दोनों भिन्न-भिन्न हैं। दूधकाल में दही बना नहीं है। जब कालान्तर में दूध से दही बनता है, उस समय ही दही का उत्पाद होता है। इस प्रकार दही का उत्पाद नहीं होने से दहीव्रतीपुरूष दूध का सेवन नहीं करता है।678
676 दुग्धव्रत दधि भुंजइ नहीं नवि दूध दधिव्रत खाइ रे
नवि दोइ अगोरसवत जिमइ, तिणि तिय लक्षण जग थाइ रे, .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/9 677 दधि द्रव्य ते दुग्धद्रव्य नहीं, जे माहिं जेहनइं दूधनुं व्रत छइं ........... वही, टब्बा, गा. 9/9 678 इम दूध ते दधिद्रव्य नहीं, परिणामी माटइं अभेद कहिइं ................... वही, टब्बा, गा. 9/9
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