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________________ यशोविजयजी ने महापट और खंडपट के उदाहरण से समझाया है। 674 महापट को फाड़कर खण्ड–खण्ड के रूप टुकड़े करने की क्रिया में महापट का नाश भी है और खण्डपट की उत्पत्ति भी है। दोनों अभिन्न है । जैसे-जैसे और जितने अंश में महापट I का नाश होता है, वैसे-वैसे और उतने ही अंश में खण्डपट का उत्पाद होता है। महापट के नाश से अभिन्न खंडपट की उत्पत्ति में एकादि तन्तुओं के संयोग का उपगम (नाश) ही वास्तविक कारण है । परन्तु महापट का नाश खंडपट की उत्पत्ति का कारण नहीं है। क्योंकि खंडपट की तरह महापट का नाश भी उत्पन्न होने से महापट नाश कारणात्मक न होकर कार्यात्मक है। महापटनाश रूप उत्तरपर्याय की उत्पत्ति होने से वह कार्य स्वरूप है न कि कारण स्वरूप । इस प्रकार महापट नाश और खंडपटोत्पत्ति की तरह घटनाश और मुकुटोत्पत्ति भी रूपान्तर रूप कार्य ही है और इसमें अवयव विभाग कारण है । पुनः नाश और उत्पाद को भिन्न मानने पर कारण के अभाव में कार्योत्पत्ति को मानना पड़ेगा। क्योंकि जब उत्तरसमय में कार्योत्पत्ति होती है तो उस समय कारण रहता नहीं है। बर्तन का गिरना और फूटना, वक्र अंगुली को सीधा करना, मिट्टी के पिण्ड से घट बनना आदि-आदि उदाहरणों में हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि पूर्व एवं उत्तर पर्यायों में नाश और उत्पत्ति न तो भिन्न-भिन्न है और न हीं उनमें कारण-कार्य भाव है। दोनों की स्थिति में एक प्रकार का रूपान्तर मात्र है और उसमें अवयव विभाग ही कारण है। 675 पदार्थ का स्वरूप इस प्रकार होने से जैनों की नैयायिकों के एकान्त भेदवाद से संगति बैठती नहीं है । 256 प्रतिसमय वस्तु तीनों लक्षणों से युक्त है प्रतिसमय प्रत्येक पदार्थ में उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य रूप त्रिपदी रहती है, इस बात को यशोविजयजी ने एक प्रचलित उदाहरण से पुष्ट किया है। दुग्धव्रती पुरूष दही 674 महापटनाशाभिन्नखंडपटोत्पत्तिं प्रतिं अकादि तंतु संयोगापगम हेतु छ ... 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग - 2, धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 401 675 Jain Education International For Personal & Private Use Only वही, गा. 9/8 का टब्बा www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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