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पर्याय की दृष्टि से देखने पर नश्यमानता (व्यय) और उत्तर पर्याय की दृष्टि से देखने पर उत्पद्यमानता (उत्पाद) दिखाई देती है। इसलिये पूर्व पर्याय को कारण और उत्तर पर्याय को कार्य नहीं कह सकते हैं। रूपान्तरता रूप पर्यायान्तरता ही कार्य है
और अविभक्त सुवर्ण द्रव्य कारण है। दूसरे शब्दों में घटनाश और मुकुटोत्पाद रूप पर्यायान्तरता कार्य है और उसका आधारभूत मूलद्रव्य {सुवर्ण} कारण है जिसमें ध्रौव्य समाविष्ट है।
इस कारण से सुवर्णघट के नाश से अभिन्न सुवर्णमुकुट के उत्पत्ति में सुवर्ण घट के अवयवों का विभाग आदि कारण है।72 उत्पत्ति और विनाश दोनों अभिन्न हैं और एकरूप है। पूर्व पर्याय (घट) का नाश ही उत्तरपर्याय (मुकुट) की उत्पत्ति है और इसमें अवयवी रूप में रहा हुआ द्रव्य ही हेतु है, परन्तु पूर्वपर्याय का नाश हेतु नहीं है।
- हेमघटनाश और हेममुकुटउत्पाद दोनों ही पर्यायों में हेमघट ही कारण है। परन्तु एकान्त भेदवादी नैयायिकों ने नाश और उत्पाद को भिन्न-भिन्न मानकर उनमें कार्यकारण सम्बन्ध स्थापित करते हैं।73 घटनाश को कारण मानकर उसे पूर्वसमयवर्ती और मुकुटोत्पाद को कार्य मानकर उसे उत्तरसमयवर्ती मानते हैं। उनके अनुसार नाश और उत्पाद समकालीन नहीं है, अपितु भिन्न समयवर्ती हैं। सदैव कारण पूर्वसमय में और कार्य उत्तर समय में ही विद्यमान रहता है। इसी आधार पर कारण को कार्य का नियत पूर्ववर्ती माना जाता है- 'कार्यनियतपूर्ववृत्तिकारणम्
न्यायदर्शन के इस एकान्त भेदवाद का खण्डन करके अनेकान्तवाद के आधार पर द्रव्य को उत्पाद–व्यय-ध्रौव्यात्मक सिद्ध करते हुए उपाध्याय यशोविजयजी कहते हैं कि घटनाश और मुकुटोत्पत्ति दोनों की कार्यरूप हैं, किन्तु कारण और कार्य के रूप में नहीं है। क्योंकि उत्पाद की तरह नाश भी उत्पद्यमान है। इस बात को
672 अतएव हेमघट नाशाभिन्न-हेममुकुटोत्पतिनइं विषइं हेम घटावयवविभागादिक हेतु छइ
..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टबा, गा. 9/8 673 घटनाश मुकुट उत्पत्तिनो, घट हेम एकज हेतु रे। ओकान्तभेदनी वासना, नइयायिक पणि किम देत रे।।
...वही, गा. 9/8
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