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प्रमाण रहित है तो प्रमाण विना की बात विद्वतसभा में मान्य नहीं होती है। इस प्रकार ज्ञेय (द्रव्य) और उसके उत्पाद आदि त्रिलक्षण वास्तविक हैं।70
___ उत्पाद को उत्पाद के रूप में, व्यय को व्यय के रूप में और ध्रौव्य को ध्रौव्य के रूप में देखने पर उत्पाद आदि तीनों लक्षण भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं और ये तीनों हर्ष, शोक और माध्यस्थ रूप भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए भिन्न-भिन्न कारण बनते भी हैं। परन्तु एकाश्रयवृत्ति से देखने पर उत्पाद आदि तीनों अभिन्न भी हैं।71 क्योंकि ये तीनों लक्षण एक ही सुवर्ण आदि द्रव्यों में घटित होते हैं। भेदप्रधान व्यवहारनय से कार्यभेद से कारणभेद होता है। परन्तु अभेदप्रधान निश्चयनय से देखने पर कार्य अनेक होने पर भी कारण एक ही है। शोकादि भिन्न-भिन्न कार्यों को देखकर पदार्थ में उत्पाद आदि तीनों लक्षणों को भिन्न-भिन्न कारणों के रूप में माना जाता है परन्तु अविभागी द्रव्य के रूप में विचार करने पर उत्पाद आदि तीनों अभिन्न
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स्थूलदृष्टि अथवा व्यवहार दृष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि घट का नाश होकर मुकुट का उत्पाद हुआ है अर्थात् घट के नाश से मुकुट का उत्पाद होता है। घटनाश कारण है और पूर्व समयवर्ती है और मुकुटउत्पाद कार्य है और उत्तर समयवर्ती है। परमार्थदृष्टि से तो घट का नाश ही मुकुट का उत्पाद है। घटनाश और मुकुटोत्पाद में समयभेद नहीं है। जिस समय घट का जितना नाश होता है, उस समय मुकुट का उतना ही उत्पाद होता है। घटनाश और मुकुटोत्पाद में समय भेद करने पर सुवर्ण (द्रव्य) में प्रतिसमय उत्पाद आदि त्रिपदी घटित नहीं होंगे। क्योंकि नाशकाल में उत्पाद और उत्पादकाल में नाश नहीं रहेगा, जबकि वस्तु प्रतिसमय त्रिलक्षणों से युक्त होती है। अतः वास्तविकता यह है कि उत्पाद और नाश दोनों भिन्न-भिन्न समय में नहीं है, अपितु रूपान्तर मात्र है। इसी रूपान्तरता को पूर्व
670 शून्यवाद पणि प्रमाण सिद्धि-असिद्धि व्याहत छइं ते ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा गा.
9/7 671 इम-शोकादिक कार्यत्रयनइ भेदइं-उत्पाद-व्यय ध्रौव्यए 3 लक्षण
वस्तुमांहि साध्यां पणि अविभक्तद्रव्यपणइ अभिन्न छइं ................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/8
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