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________________ बात प्रत्यक्ष सिद्ध नहीं होती है। इसलिए पदार्थों और तद्गत उत्पाद आदि को अवास्तविक मानना युक्तिसंगत नहीं है । योगाचार बौद्धदर्शन का कथन है कि न तो सुवर्ण, सुवर्णघट, सुवर्णमुकुट आदि पदार्थों की कोई वास्तविक सत्ता है और न ही उनमें मन की भिन्न-भिन्न वासनाओं में निमित्त बनने वाले उत्पादादि पर्यायों के रूप में भिन्न-भिन्न निमित्त भेद हैं। क्योंकि संसार में घटपटादि समस्त पदार्थ वास्तविक पदार्थ नहीं है । मात्र उनका ज्ञानाकार ही है । ज्ञानाकार ही पदार्थ हैं । वासना से ज्ञानाकार का जन्म होता है और ज्ञानाकार से हर्ष, शोकादि भाव उत्पन्न होते हैं। पदार्थ और पदार्थगत उत्पाद आदि निमित्त कारणों के भेद के बिना ही ज्ञानाकार से ही शोक - प्रमोद आदि संकल्प मन में उठ जाते हैं। इसलिए पदार्थ और हर्ष - शोकादि कार्यों को आगे करके उनमें उत्पादादि निमित्त भेद को मानना नितांत मूर्खता है। क्योंकि संसार में पदार्थ और पदार्थ के उत्पाद आदि तीनों लक्षण मृगमरीचिका के जल की तरह शून्य है । संसार में मात्र ज्ञान ही है। कुछ भी ज्ञेय नहीं है। 252 योगाचार के इस मत का खण्डन करते हुए उपाध्याय यशोविजयजी कहते हैं - ज्ञेय की वास्तविक सत्ता को अस्वीकार करके मात्र ज्ञानाकार को मानने पर घट-पट आदि पौद्गलिक पदार्थों के अस्तित्व के बिना ही केवल वासना विशेष से ही घटपटादि का आकारवाला ज्ञान उत्पन्न हो जायेगा । ऐसी स्थिति में घट-पट आदि बाह्य पदार्थों का लोप हो जाने से उन-उन विवक्षित कारणों के अभाव में उन-उन विवक्षित आकारवाले ज्ञान की उत्पत्ति भी संभव नहीं हो पायेगी । 669 घट पटादि पदार्थों के अभाव में यह ज्ञान घटाकार रूप है और यह ज्ञान पटाकार रूप है, ऐसा स्पष्ट बोध भी नहीं हो सकता है । ज्ञेय के बिना ज्ञान उत्पन्न नहीं हो सकता है । मृगमरीचिका में जल नहीं है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि संसार में ही जल नहीं है। समुद्र, सरोवर आदि में जल है और उसी सदृश्यता की प्रतीति से ही 669 घट पटादि निमित्त विना ज वासना विशेषइ घट पटाकार ज्ञान होइ तिवारइं- बाह्य वस्तु सर्व लोपाइं अनइं निष्कारण तत्तदाकार ज्ञान पणिं न संभवइ Jain Education International द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/7 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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