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द्रव्यों में उत्पादादि तीन लक्षण नहीं है। परन्तु मात्र उत्पाद और व्यय ही है। इसलिए शोकादि कार्यों का कारण उत्पाद आदि तीन लक्षण नहीं हैं। हेम, हेमघट और हेममुकुट को देखकर जो शोकादि कार्य उत्पन्न होते हुए दिखाई देते हैं, उनका कारण उत्पाद व्यय और ध्रौव्य नहीं है, अपितु देखने वाले व्यक्ति के मन में रही हुई वासना ही शोकादि का कारण है।666 स्वेष्टसाधनता, स्वानिष्टसाधनता, तदुभयभिन्नता इस प्रकार की देखनेवाले व्यक्तियों के मन में रही हुई भिन्न-भिन्न वासना ही हर्षादि का कारण है। भिन्न-भिन्न वासना के कारण ही वस्तु को देखकर भिन्न-भिन्न भाव उत्पन्न होते हैं। अतः वस्तु तो जैसी है, वैसी ही है, वस्तु में त्रिविधा या विविधता नहीं है, क्योंकि एक ही वस्तु व्यक्ति के मन में रही हुई वासना के भेद से किसी को इष्ट और किसी को अनिष्ट लगती है। ईख आदि वस्तुएं जहाँ मनुष्य को इष्ट लगती है वही करभ (ऊंट, रासभ) आदि को अनिष्ट लगती है। इससे वस्तु में कोई परिवर्तन नहीं आता है। इसलिए द्रव्य में उत्पादादि त्रिविधता नहीं है।
जैनदर्शन के अनुसार कार्योत्पत्ति में उपादान और निमित्त दोनों कारणों का अपना-अपना महत्त्व है। कार्योत्पत्ति में दोनों कारणों की उपस्थिति आवश्यक है। इसलिए यशोविजयजी कहते हैं –निमित्त भेद के बिना वासना रूप मन की भिन्नता घटित नहीं हो सकती है। जिस प्रकार शोक, हर्ष और माध्यस्थभाव रूप कार्यों के लिए तीन भिन्न-भिन्न व्यक्ति रूप भिन्न-भिन्न उपादान कारण है, उसी प्रकार शोकादि कार्यों के लिए निमित कारण भी भिन्न-भिन्न अवश्य होते हैं। 67 इष्टताबुद्धि, अनिष्टताबुद्धि और तदुभय भिन्न बुद्धि रूप मन की इन वासनाओं में भिन्न-भिन्न भेद निमित के कारण ही होता है।
यदि सामने स्थित बाह्य वस्तु के प्रति इष्टताबुद्धि आदि वासना में निमित्त नहीं बनते हों और केवल उपादानभूत आत्मा से ही इष्टताबुद्धि आदि द्वारा तीन
666 शोकादि णननइ वासना, भेदइ कोइ बोलइ बुद्ध रे।
तस मनसकारनी भिन्नता, विण निमित भेद किम शुद्ध रे। ..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/6 667 ते बौद्धने निमित्तभेद विना वासनारूप मनस्कारनी भिन्नता किम शुद्ध थाई ?
........ द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/6
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