SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी घट, पट आदि कार्य बनने लग जायेंगे। परन्तु ऐसा होता नहीं है। मिट्टी से घट कार्य और तन्तु से पट कार्य ही उत्पन्न होता है। जिन-जिन कारणों से जो-जो कार्य शक्ति नियत रूप से रहती है, उन-उन कार्यों की उत्पत्ति उन्हीं कारणों से होती है। अन्यथा जैसे अग्नि में दाहशक्ति है, उसी प्रकार अग्नि के समीपवर्ती जल में भी दाहशक्ति होनी चाहिए।84 इसी प्रकार एक ही कारण से अनेक कार्यों की उत्पत्ति होती है तो मिट्टी रूप एक कारण से अनेक कार्यों की उत्पत्ति होनी चाहिए। अतः जिस प्रकार घटोत्पाद की शक्ति मिट्टी में और पटोत्पाद की शक्ति तन्तु में है, उसी प्रकार शोकादि त्रिविध कार्योत्पादक शक्ति सुवर्ण द्रव्य में होने से सुवर्ण में उत्पाद आदि तीनों लक्षण वास्तविक हैं। इस प्रकार एक शक्ति (कारण) रूप स्वभाववाले द्रव्य से अनेक कार्य उत्पन्न नहीं हो सकते हैं। परन्तु भिन्न-भिन्न कार्यों को करने की भिन्न-भिन्न शक्तियां एक ही कारण द्रव्य में होती हैं तथा कार्यभेद के अनुसार कारण (शक्ति) में भेद अवश्य होता है। जहाँ कार्य भेद हैं, वहाँ कारण भेद होता ही है। प्रमोद, शोक और माध्यस्थ रूप कार्यभेद होने से उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ऐसे त्रिविध शक्तिरूप कारण भेद भी अवश्य है। उत्पादादि त्रिविधशक्तिरूप कारण भेद स्वर्ण में होने से स्वर्ण त्रिविध रूपवाला है। वस्तु उत्पाद-व्यय-धौव्य रूप से त्रयात्मक है - सोत्रान्तिक और वैभासिक बौद्धदर्शन के अनुसार घट-पट आदि समस्त स्थूल और चेतन आदि समस्त सूक्ष्म पदार्थ क्षणिक हैं। सभी पदार्थ मात्र उत्पाद और विनाशशील ही हैं। जैसे तराजू के पलड़े प्रतिक्षण नमन और उन्नमन को प्राप्त होते रहते हैं, उसी प्रकार सभी पदार्थ प्रतिक्षण उत्पाद और विनाश स्वभाव वाले ही होते हैं। कोई भी द्रव्य ध्रुव नहीं है। क्षणिकत्व ही पदार्थ (द्रव्य) का लक्षण है। हेमादि 664 शक्ति पणि दृष्टानुसारई कल्पिई छई ... वही, टब्बा, गा. 9/5 665 तस्मात् शक्तिभेदे कारणभेद, कार्य भेदानुसारइ अवश्य अनुसरवो, ......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टबा,गा.9/57 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy