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________________ 247 पूर्व पर्याय (घटाकार) के व्यय का जो समय है, वही नवीन पर्याय (मुकुटाकार) के उत्पाद का समय है। उसी समय कंचन के रूप में ध्रुवता भी है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य का परस्पर अविनाभाव सम्बन्ध है। एक के बिना दूसरा नहीं रह सकता है। द्रव्य की सिद्धि के लिए इन तीनों का एक साथ होना आवश्यक है।659 इस प्रकार एकक्षेत्रावगहित्व और एकद्रव्यव्यापित्व की अपेक्षा से उत्पादादि तीनों लक्षण कथंचित् अभिन्न हैं। उत्पादादि तीनों लक्षण शोक, प्रमोद और माध्यस्थ रूप भिन्न-भिन्न कार्यों को करने वाले शक्ति स्वरूप की अपेक्षा से भिन्न-भिन्न भी प्रतीत होते हैं।60 सुवर्णघट के व्यय से घटइच्छुक व्यक्ति को शोक, मुकुट के उत्पाद से मुकुट इच्छुक व्यक्ति को प्रमोद और सुवर्ण इच्छुक व्यक्ति को माध्यस्थभाव होता है। इस प्रकार त्रिविध कार्य प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। अतः त्रिविध कार्य करने की शक्ति स्वरूप से व्यायादि तीनों लक्षण कथंचित् भिन्न है। इसी बात को आचार्य समन्तभद्र ने दूध, दही और गोरस के उदाहरण से समझाया है। दूध नहीं खाने का संकल्प करनेवाला दही के गोरस होने पर भी दूध से भिन्न मानकर खा लेता है। उसी प्रकार दही नहीं खाने का संकल्प करने वाला दूध के गोरस होने पर भी दही से भिन्न मानकर खा लेता है। परन्तु गोरस नहीं खाने की प्रतिज्ञा वाला दूध और दही दोनों को नहीं खाता है। गोरस, दूध और दही परस्पर भिन्न और अभिन्न दोनों हैं।661 पुनः 'यह सुवर्ण है' ऐसा सामान्य दृष्टि से देखने पर ध्रौव्यता दिखाई देती है और घट, मुकुट इत्यादि विशेष रूप से देखने पर व्यय-उत्पाद दृष्टिगोचर होते हैं।62 तीनों लक्षण अपने-अपने स्वरूप की दृष्टि से भिन्न-भिन्न होने पर भी एकक्षेत्रावगाही और एककालवर्ती होने से उनमें परस्पर विरोध नहीं होता है। जैसे 659 तम्न यदविनाभावः प्रादुर्भावधुवव्ययानां हि यस्मादेकेन विना न स्यादितरद्वयं तु तन्नियमात पंचाध्यायी, का. 1/249 660 पणि शोक प्रमोद माध्यस्थ्य रूप ............................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/4 661 पयोव्रतो न दध्यति .. आप्तमीमांसा, 3/60 662 सामान्य रूपई ध्रौव्य अनइं द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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