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________________ 246 ही होता तो मात्र ध्रुवता की ही सिद्धि होती। परन्तु ऐसा होता नहीं है। सुवर्णद्रव्य किसी न किसी घटादि आकार के रूप में ही होता है और आकार बदलते रहने से उत्पाद-व्यय अवश्य होते हैं और साथ ही सुवर्ण के रूप में ध्रौव्यता भी रहती है।655 द्रव्य की यह ध्रौव्यता उत्पाद-व्यय सापेक्ष होती है। तत्वार्थसूत्रकार:56 ने नित्य का यही लक्षण दिया है। जो अपने भाव को न वर्तमान में छोड़ता है और न ही भविष्य में छोड़ेगा, वह नित्य है।57 उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य से जो युक्त है, वह सत् कहलाता है। इस सत् के भाव से जो कदापि चलित नहीं होता है, वही नित्य है। इस प्रकार उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य में परस्पर विरोध नहीं है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यता में भिन्नता और अभिन्नता - स्वाभाविक रूप से एक प्रश्न उठता है कि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य परस्पर भिन्न है अथवा अभिन्न हैं ? क्योंकि यदि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य परस्पर भिन्न हैं तो वस्तु त्रयात्मक नहीं हो सकती है और यदि ये तीनों परस्पर अभिन्न हैं तो वस्तु को एक रूप ही मानना चाहिए ? सभी जैन दार्शनिकों की तरह उपाध्याय यशोविजयजी ने भी स्याद्वाद के आधार पर ही समस्त समस्याओं का समाधान किया है। इस दृष्टि से उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य भी परस्पर कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न दोनों हैं। शोकादि त्रिविध कार्य करने की शक्ति स्वरूप की दृष्टि से उत्पादादि तीनों परस्पर भिन्न-भिन्न है। परन्तु एक ही द्रव्य में प्रत्येक समय में एक साथ रहने से उत्पादादि तीनों परस्पर अभिन्न भी हैं।58 उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य ये तीनों भिन्नकालवर्ती नहीं है। जो सुवर्ण घट का व्यय है, वही सुवर्ण मुकुट का उत्पाद है तथा सुवर्ण की ध्रुवता भी वही है। क्योंकि 655 इहां उत्पादव्ययभागी भिन्नद्रव्य, अनइं स्थितिभागी भिन्नद्रव्य ....... द्रव्यगुणपर्यायनोरास का टब्बा, गा. 9/8 66 तद्भावाव्ययं नित्यम् ................ तत्त्वार्थसूत्र, 5/30 657 यत् सतो भावान्न व्येति न व्येष्यति तन्नित्यम् . ...... तत्त्वार्थभाष्य, 5/30 658 घटव्यय ते उतपति मुकुटनी, ध्रुवता कंचननी ते ओक रे, दल ओकइ वर्तइ ओकदा, निजकारथशक्ति अनेक रे ............................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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