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________________ 244 उत्पाद एवं उत्पाद-व्यय के बिना ध्रौव्य का अस्तित्व किसी भी पदार्थ में कहीं पर भी प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है। सर्वत्र सभी पदार्थ में उत्पादादि तीनों लक्षण एक साथ ही दिखाई देते हैं। उत्पादादि तीनों लक्षणों के बिना किसी पदार्थ की संगति नहीं बैठ सकती है। उदाहरणार्थ अनेक पदार्थों को उपस्थित किया जा सकता है। जैसे – सोना, दूध, पानी आदि। सोना, दूध और पानी ध्रुव तत्त्व हैं। सोने से घट, मुकुट आदि, दूध से खीर, दही आदि, पानी से बर्फ, भाप आदि बनाये जाते हैं। यह उत्पाद और विनाश की प्रक्रिया है। साथ ही घट के नाश के बिना मुकुट की उत्पत्ति नहीं है, न ही मुकुट के उत्पत्ति के बिना घट का विनाश है। इस प्रकार घटनाश और मुकुटउत्पत्ति भी बिना सोने के अस्तित्व के संभव नहीं है। उत्पाद और विनाश (परिवर्तनशीलता) तथा ध्रौव्य (नित्यता) तीनों साथ रहकर ही द्रव्य को परिपूर्णता प्रदान करते हैं। केवल उत्पाद, केवल व्यय अथवा केवल ध्रौव्य द्रव्य का लक्षण नहीं हो सकता है। - प्रत्येक द्रव्य उत्पाद–व्यय-ध्रौव्य रूप से त्रयात्मक है। सुवर्ण घट का अर्थी सुवर्णघट के नाश होने पर दुःखी होता है। सुवर्णमुकुट का अर्थी सुवर्णमुकुट के उत्पन्न होने पर हर्षित होता है। परन्तु सुवर्ण मात्र का अर्थी उस सुवर्णघट से सुवर्ण मुकुट बनने पर न दुःखी होता है और न हर्षित होता है, अपितु मध्यस्थभाव में रहता है। क्योंकि सुवर्णत्व दोनों अवस्थाओं में स्थित रहता है। एक ही समय में दुःख, हर्ष और मध्यस्थभाव बिना कारण नहीं हो सकते हैं। जब सुवर्ण घट से, सुवर्ण मुकुट बनाया जाता है, उस समय घटाकार रूप सुवर्ण का नाश होने से घटार्थी व्यक्ति को दुःख होता है। यदि घटाकार रूप सुवर्ण का नाश नहीं होता है तो सुवर्ण घट के अर्थी को दुःख क्यों होता ? अतः घटाकार रूप सुवर्ण का नाश वास्तविक है।652 इसी प्रकार सुवर्ण का मुकुटाकार रूप में उत्पाद भी है, क्योंकि यदि सुवर्णद्रव्य का मुकुटाकार के रूप में उत्पत्ति नहीं होती तो मुकुटार्थी व्यक्ति को हर्षित होने का कोई 651 घट मुकुट सुवर्णह अर्थिआ, व्यय उतपति थिति पेखंत रे। निज रूपइ होवइं हेमथी, दुःख हर्ष उपेक्षावंत रे । ..... ................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 9/3 652 जे माटि हेमघट भांजी, हेममुकुट थाइ छइ, तिवारइं हेमघटार्थी दुःखवंत थाइ, ..... वही,टब्बा 9/3 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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